मुआवजा भी इतना कम था कि बाहर जाकर खेती के लिए जमीन लेना संभव नहीं था। अब 2009 से चुटका परमाणु बिजलीघर प्रस्तावित हो गया है जिसके विरोध में लगातार संघर्ष और ग्राम सभा से इस परियोजना को निरस्त करने का प्रस्ताव पारित किया जा रहा है। लेकिन सरकार द्वारा अब तक कोई जबाव अथवा संवाद नहीं किया गया है। विरोध के बावजूद काश्तकारों के खाते में 3 लाख 83 हजार रुपए हेक्टेयर की दर से मुआवजा राशि बगैर सहमति के डाल दी गई। ग्रामीणों का कहना है कि अपनी मातृभूमि नहीं छोड़ना चाहते हैं। सांसद ने कहा कि मैं भी एक आदिवासी हूं। देश में जहां जहां आदिवासी है, उन क्षेत्रों में परियोजना लगाकर आदिवासी समुदाय को उनके जल जंगल जमीन से बेदखल किया जा रहा है। इसके खिलाफ देश भर के आदिवासी एकत्रित होकर लड़ाई लड़ रहे हैं।
परमाणु परियोजना तो बहुत ही घातक है। इसे सघन आबादी वाले इलाके में स्थापित नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए इसे यहां नहीं लगने देना है। मैं इस मुद्दे को संसद में उठाऊगा और प्रधानमंत्री से भी इस संबंध में बात करूंगा। पूर्व विधायक दरबू सिंह उईके ने कहा कि चुटका के संघर्ष को देश में सभी जानते हैं। उन्होने कहा कि युद्ध की स्थिति में दूसरे देश के निशाने पर ऐसी परियोजना रहती है । जिससे ज्यादा से ज्यादा जानमाल की हानि हो सके। मंडला, सिवनी, डिंडोरी और जबलपुर क्षेत्र के लिए हमेशा खतरा बना रहेगा। इसलिए इस परियोजना को रोका जाना आवश्यक है। इस दौरान में गेहबर सिंह, चमारी लाल, कमल सिंह बरकड़े, ओपी लाल बरकड़े रोशन, सर्जन, मीराबाई, सोनाबाई, गोमतीबाई, मुन्नबाई भूतपूर्व सरपंच की उपस्थिति रही।