रोमाचंकारी है नर्मदा की रहस्यमयी मान्यताएं
लगातार सूखती नर्मदा के लिए आस्थावान बेचैन

मंडला. मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतश्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर स्थित अमरकंटक से निकलकर नर्मदा नदी मंडला की ओर बहती है और यहां दक्षिण-पूर्व की ओर, रामनगर से होती हुई मंडला पहुंचती है। लगभग 25 किमी के प्रवाह मार्ग पर बहते हुए नर्मदा जबलपुर की ओर मुड़ जाती है। मंडला शहर को नर्मदा एक करधनी की तरह घेरकर बहती है। इसी करधनी घुमावदार से अनेक ऐसे किवदंतियां जुड़ी हैं जिसे लेकर नर्मदाभक्तों में आज भी कई तरह के रहस्य बरकरार हैं।
जानकारों का कहना है कि करधनी के आकार में बहती नर्मदा और सामने से आकर उसमें मिलने वाली बंजर नदी के कारण बने त्रिशूल के आकार के तर्क पर वर्षों से यह माना जाता है कि मंडला ही पौराणिक राजा सहस्त्रबाहु की राजधानी प्राचीन माहिष्मति नगरी है। कहते हैं कि मंडला में पहले नर्मदा हनुमान घाट से बिना घूमे सीधी रयपुरा के चक्रतीर्थ घाट पर होकर बहती थीं। लेकिन बाद में किला बनने और उसकी सुरक्षा के कारण गोंड राजाओं ने चारों तरफ से खोदकर नदी की धारा ही बदल दी।
यहीं पर हुआ था शास्त्रार्थ
नर्मदा से जुड़ी सर्वप्रमुख मान्यताओं में इसकी दूसरी कथा शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करने वाले मंडन मिश्र की है जिन्होंने पितृतर्पण के लिए आए संत-महात्माओं के दक्षिण तट पर पूजा और भोजन ग्रहण करने से इनकार करने पर अपने तप के बल पर नर्मदा का बहाव ही बदल दिया था। नतीजे में नदी शहर के उत्तर की बजाए घेरा मारकर दक्षिण से बहने लगी थी।
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