परिजन खुद मरीजों को लाने-ले जाने के लिए लाचार
मंडला•Oct 09, 2019 / 05:44 pm•
Mangal Singh Thakur
Patients seeking treatment in IPD are struggling seeking Translations
मंडला. साब, यहां तो कोई कुछ बताता ही नहीं, किस मंजिल में जाएं, किस कमरे में वार्ड है, कोई बताता ही नहीं। आधे-आधे घंटे मरीज को लेकर स्ट्रेचर ढकेल रहे हैं। यह कहना है माधोपुर से आए पटेल परिवार के परिजनों की व्यथा, जिनके परिजन को गंभीर रूप से बीमार होने पर अस्पताल के चिकित्सकों ने उन्हें आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया था। रैम्प में स्ट्रेचर ढकेलने के लिए मौके पर कोई वार्ड बॉय नहीं मिला तो खुद ही संदीप पटेल ने स्ट्रेचर को ढकेलना शुरु किया। भूतल से प्रथम तल पर गए, जब प्रथम तल के हर कमरे को तलाश लिया तो पता चला कि आइसोलेशन वार्ड तो दूसरे तल पर है। आईपीडी में भर्ती किए जाने वाले मरीजों के परिजनों की यह समस्या एक दिन की नहीं, बल्कि रोज की है।
आईएसओ प्रमाणित जिला अस्पताल में भर्ती किए जाने वाले मरीजों को न ही समय पर स्ट्रेचर मिल रहे हैं और न ही व्हील चेयर, न ही वार्ड बॉय और न ही ऐसा कोई स्वास्थ्यकर्मी जो उन्हें वार्ड के संबंध में सही जानकारी दे सके। किसी एक प्रमुख वार्ड में जाने वाले के लिए उन्हें अस्पताल का पूरा भवन तलाशना पड़ रहा है।
खुद ही ढकेल रहे स्टे्रेचर
माधोपुर निवासी संदीप पटेल के परिजन का स्वास्थ्य शनिवार की रात को अचानक खराब हो गया। स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र से उन्हें सोमवार को जिला अस्पताल भिजवाय गया। मरीज की बिगड़ती हालत को देखकर चिकित्सक ने उन्हें आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कराया। मरीज को वार्ड तक पहुंचाने में परिजनों को पसीने छूट गए और वे आधे घंटे तक वार्ड का कक्ष ही तलाशते रहे क्योंकि उन्हें वार्ड की सही स्थिति बताने के लिए कोई स्वास्थ्यकर्मी नहीं मिला।
नहीं मिली सहायता
हिरदेनगर निवासी राजीव कुमार अपने परिजन को व्हील चेयर में बिठाकर सीटी स्कैन कराने नजदीक सेंटर ले जाना चाहते थे। वृद्ध परिजन को न ही अकेला छोडकऱ किसी वाहन की व्यवस्था करने अस्पताल परिसर से बाहर जा पा रहे थे और न ही व्हील चेयर के साथ परिजन को अस्पताल के मुख्य द्वार तक ले जा सकते थे। अस्पताल के वार्ड बॉय ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि अस्पताल से बाहर तक छोडऩे या मरीज की तकवारी करना उनका काम नहीं।
मरीज को उठाना भी मुश्किल
अंजनिया क्षेत्र से बुरी तरह झुलसी महिला को जिला अस्पताल लाया गया। अस्पताल में सही व्यवस्था न देखकर परिजनों ने निजी अस्पताल ले जाने की तैयारी की। वार्ड से मरीज को स्टे्रेचर पर लेटा कर छोड़ दिया गया। न ही कोई वार्ड बॉय अस्पताल के बाहर तक स्ट्रेचर लेकर आया और न ही किसी स्वास्थ्यकर्मी ने बुरी तरह से झुलसी महिला को ऑटो रिक्शा में बिठाने में मदद की। परिजन देर तक इसी उधेड़बुन में दिखे कि महिला को आखिरकार किस तरह से ऑटो में बिठाया जाए क्योंकि महिला के शरीर की पूरी त्वचा झुलस चुकी थी।
इस बारे में जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ महेंद्र तेजा का कहना है कि किसी मरीज ने वार्ड बॉय की शिकायत नहीं की है। यदि वार्ड बॉय इस तरह की मनमानी कर रहे हैं तो परिजनों को तत्काल अस्पताल प्रबंधन को सूचित करना चाहिए। व्यवस्था सुधारने का प्रयास किया जाएगा।