इस बात को आसानी से जानने के लिए आपको थोड़ा फ्लैशबैक पर जाने की ज़रुरत है। याद कीजिये वो वक्त जब तत्कालीन मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में नोटों को बंद करने और इनमे बदलाव लाने के कदम उठाये गए थे।
साल 1978 में देसाई सरकार ने एक हज़ार, पांच हज़ार और दस हज़ार रूपए के नोटों को बंद करने का फैसला लिया था। इन मूल्यों के ये नोट दरअसल, बैंक नोट कहलाते थे जिन्हें 1954 में जारी किया गया था। सरकार ने इन सभी को जनवरी 1978 में वापस ले लिया था।
देसाई सरकार ने जब ये बड़ा फैसला लिया था तब भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर इंद्रप्रसाद गोर्धनभाई पटेल थे। मोरारजी देसाई और गोर्धनभाई पटेल की जोड़ी गुजराती थी।
अब ज़रा ताज़ा दौर पर गौर फरमाएं। इतने लंबे अंतराल बाद जब देश में 500 और एक हज़ार रूपए कीमत के नोटों को बंद करने का फैसला लिया गया है तब गुजरात से ही ताल्लुक रखने वाले नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री है और उर्जित पटेल आरबीआई के गवर्नर हैं।
ऐसे में नोटों में बदलाव के इस गुजराती कनेक्शन का संयोग होना कहा जाए या फिर कुछ और लेकिन ये कनेक्शन वाकई दिलचस्प ज़रूर है।