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यहां के लोग नहीं मनाएंगे महापर्व की खुशियां

locationमंडलाPublished: Apr 23, 2019 11:34:13 am

Submitted by:

Mangal Singh Thakur

नेताओं के चुनावी वादों से नहीं संतुष्ट, बूंद-बूंद पानी को तरस रहे ग्रामीण

People will not celebrate the happiness of the Mahaparv

यहां के लोग नहीं मनाएंगे महापर्व की खुशियां

नारायणगंज. ग्रामीण मतदाता नेताओं के चुनावी वादों से संतुष्ट नहीं है। उन्हें तो पहले अपने गांव की विकराल समस्या का समाधान चाहिए। आधी गर्मी में ही लोगों के कंठ को तर करने के लिए पानी नहीं मिल रहा है। दिन रात की कड़ी मशक्कत के बाद पीने का पानी उपलब्ध होता है। ऐसे में मतदान का महापर्व ग्रामीणों को खुशियां नहीं दे पाएगा। लोकसभा चुनाव से नारायणगंज जनपद के ग्राम पंचायत अमदरा के पौषक ग्राम कुई माल का हाल जाना तो विभिन्न समस्याएं सामने आई। लगभग 700 की आबादी वाले इस गांव में सबसे प्रमुख समस्या पेयजल की है। गांव वालों ने बताया कि गांव में बीते कई सालों से पानी की समस्या है। पानी की किल्लत को लेकर ग्राम पंचायत से लेकर विधायक, सांसद व प्रशासनिक अधिकारियों तक बात पहुंचाई गई। लेकिन किसी ने आज तक कोई उपाय नहीं किया। गांव के लोग आज पानी की एक-एक बूंद के लिए त्रस्त हैं। गांव वालों का कहना है कि पानी की किल्लत को लेकर गांव वाले काफी समय से प्रदर्शन और विरोध कर रहे हैं। ग्राम में 5 से6 हैडपम्प होने के बाद भी एक हैंडपंप शुद्ध पानी नहीं दे पा रहा है। घंटो हैंडल मारने के बाद भी हवा ही निकल रही है। वही कुंए भी शुरुआती दिन में अपना रंग दिखाना शुरू कर दिए हैं। ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए दो किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। उबाड़-खाबड़ रास्ते से जंगल में जाना पड़ता है। लगातार उपयोग व जल स्तर कम होने के कारण वह कुंआ भी सूखने की कगार पर है।
मवेशियों के लिए बढ़ी मुसीबत
गांव के लेखराम मरावी, जमुना मरावी, महेश मरावी, श्रीचंद्र उद्दे, कोमल भवेदी आदि ने बताया कि हम तो किसी तरह से प्यास बुझा रहे हैं। लेकिन मवेशियों के लिए पानी का जुगाड़ करना मुश्किल हो रहा है। पानी के लिए ग्रामीण 4 बजे रात से ही कुंए के पास लाइन लगा लेते हैं। धीरे धीरे कुंए में पानी रिसता है उसे ही ग्रामीण बाल्टी से निकालकर अपने बर्तन में भरते हैं। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि नेता चुनावी वादे तक सीमित रह गए हैं। एक बार जीत जाने के बाद कभी गांव की सुध नहीं लेते हैं। सभी को चुनाव के वक्त की गांव की समस्या याद आती है। घर-घर शौचालय बनावा दिए गए हैं नियमित उपयोग के लिए दबाव भी बनाया जा रहा है लेकिन पानी की गांव में नहीं है तो शौचालय का उपयोग करना ग्रामीणों के लिए और भी दुखदाई हो रहा है। इतना ही नहीं जहां जनप्रतिनिधि क्षेत्र के विकास की बात कर रहे हैं वहीं कुई माल तक पक्की सडक़ भी नहीं पहुंच सकी है। मुख्य मार्ग से गांव तक व गांव अंदर भी कच्ची सडक़ में ही सफर तय करना पड़ता है। ग्रामीणों का आरोप है कि शासन व जनप्रतिनिधि उन्हें महज वोट बैंक की तरह ही उपयोग करते हैं। समस्या सुनने वाला भी कोई नहीं है। कई बार आवेदन देने के बाद आवेदन को कचरे के ढेर में डाल दिया जाता है। यहां की सुध लेने अधिकारी पहुंचे और न ही क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि। इसीलिए लोक चुनाव में मतदान के बहिष्कार करने ग्रामीण तैयारी कर रहे हैं।

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