scriptपितृ दोष हो प्रबल तो ये करें उपाय | TARPAN : how do worship if pitra dosh is strong | Patrika News

पितृ दोष हो प्रबल तो ये करें उपाय

locationमंडलाPublished: Sep 25, 2018 08:51:10 pm

Submitted by:

shivmangal singh

पितृ पक्ष सोमवार से शुरू, सोलह दिन तक होगी पूजा अर्चना

Tarpan

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मंडला. यदि कुंडली में प्रबल पितृ दोष हो तो पितरों का तर्पण अवश्य करना चाहिए। तर्पण मात्र से ही हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं। वे हमारे घरों में आते हैं और हमको आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यदि कुंडली में पितृ दोष हो तो इन सोलह दिनों में तीन बार एक उपाय करिए। सोलह बताशे लीजिए। उन पर दही रखिए और पीपल के वृक्ष पर रख आइये। इससे पितृ दोष में राहत मिलेगी। यह उपाय पितृ पक्ष में तीन बार करना है। दूरदराज में रहने वाले, सामग्री उपलब्ध नहीं होने, तर्पण की व्यवस्था नहीं हो पाने पर एक सरल उपाय के माध्यम से पितरों को तृप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाइए। अपने दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की ओर करिए। 11 बार पढ़ें ऊं पितृदेवताभ्यो नम। ऊं मातृ देवताभ्यो नम: ।
पितरों को किया तर्पण
पूर्णिमा तिथि के साथ ही सोमवार से श्राद्ध पक्ष प्रारम्भ हो गया है। सोलह दिन के लिए हमारे पितृ घर में विराजमान होंगे। अपने वंश का कल्याण करेंगे। घर में सुख-शांति-समृद्धि प्रदान करेंगे। जिनकी कुंडली में पितृ दोष हो, उनको अवश्य अर्पण-तर्पण करना चाहिए। वैसे तो सभी के लिए अनिवार्य है कि वे श्राद्ध करें। श्राद्ध करने से हमारे पितृ तृप्त होते हैं। अश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष को समर्पित है। इन सोलह दिनों में हमारे पूर्वज हमारे घरों पर आते हैं और तर्पण मात्र से ही तृप्त होते हैं। श्राद्ध पक्ष का प्रारम्भ भाद्रपद मास की पूर्णिमा से होता है। पितरों के प्रति तर्पण अर्थात जलदान पिंडदान पिंड के रूप में पितरों को समर्पित किया गया भोजन ही श्राद्ध कहलाता है। देव, ऋषि और पितृ ऋण के निवारण के लिए श्राद्ध कर्म है। अपने पूर्वजों का स्मरण करने और उनके मार्ग पर चलने और सुख-शांति की कामना ही वस्तुत: श्राद्ध कर्म है। पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय का अंश निकालें (इसमें भोजन की समस्त सामग्री में से कुछ अंश डालें) फिर किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लें। कुश और काले तिलों के साथ तीन बार तर्पण करें। ऊं पितृदेवताभ्यो नम: पढ़ते रहें। बाएं हाथ में जल का पात्र लें और दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की तरफ करते हुए उस पर जल डालते हुए तर्पण करते रहें। वस्त्रादि जो भी आप चाहें पितरों के निमित निकाल कर दान कर सकते हैं।
तेल और साबुन का प्रयोग न करें
शेविंग न करें
जहां तक संभव हो, नए वस्त्र न पहनें
तामसिक भोजन न करें। तामसिक होने के कारण ही इनको निषिद्ध किया गया है।
पुरुष का श्राद्ध पुरुष को, महिला का श्राद्ध महिला को दिया जाना चाहिए।
यदि पंडित उपलब्ध नहीं हैं तो श्राद्ध भोजन मंदिर में या गरीब लोगों को दे सकते हैं।
यदि कोई विषम परिस्थिति न हो तो श्राद्ध को नहीं छोडऩा चाहिए। हमारे पितृ अपनी मृत्यु तिथि को श्राद्ध की अपेक्षा करते हैं। इसलिए यथा संभव उस तिथि को श्राद्ध कर देना चाहिए।
यदि तिथि याद न हो और किन्हीं कारणों से नहीं कर सकें तो पितृ अमावस्या को अवश्य श्राद्ध कर देना चाहिए।
श्राद्ध की तिथियां
25 सितंबर – प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर – द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर – तृतीय श्राद्ध
28 सितंबर – चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर – पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर – षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर – सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर – अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर – नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर – दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर – एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर – द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर – त्रयोदशी श्राद्धए चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर – सर्वपितृ अमावस्या

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