scriptस्कूलों में मनमानी स्टेशनरी संचालकों को मिल रहा फायदा | The advantage of arbitrary stationary operators in schools | Patrika News

स्कूलों में मनमानी स्टेशनरी संचालकों को मिल रहा फायदा

locationमंडलाPublished: Apr 17, 2019 11:01:48 am

Submitted by:

Mangal Singh Thakur

कमीशनखोरी का जाल

The advantage of arbitrary stationary operators in schools

स्कूलों में मनमानी स्टेशनरी संचालकों को मिल रहा फायदा

मंडला. जिले में संचालित निजी स्कूलों और प्रकाशकों के बीच सांठगांठ नजर आ रही है। लगता है प्रकाशक किताबों पर मोटा कमीशन स्कूल संचालकों को देने का वादा कर चुके हैं। जिसका निजी प्रकाशकों के इस वादे का असर भी दिखाई दे रहा है। अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों में विभिन्न कक्षाओं की किताबें कमीशनखोरी के जाल में उलझ गई हैं। निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को लगवाने की जगह निजी प्रकाशनों की किताबों के सेट तैयार हो गए हैं और जिले में चुनिंदा काउंटरों से बिकना भी शुरू हो गए हैं। लाचार अभिभावकों के पास इन महंगी किताबों को खरीदने के अलावा कोई विकल्प भी नही है।
सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी और शिक्षा का स्तर घटिया होने से जिले में निजी स्कूल बड़ी संख्या में खुल गए हैं। जिले में करीब 250 निजी स्कूल हैं। इन स्कूलों में हजारों बच्चे पढ़ रहे हैं। इन हजारों बच्चों के मान से ही हर स्कूल के निजी प्रकाशनों ने अलग-अलग कमीशन सेट कर रखा है। स्टेशनरी क्षेत्र से जुड़े लोगों की मानें तो हर स्कूल को निजी प्रकाशनों की किताबें लगाने पर 25 से 30 फीसदी कमीशन मिलता है।
वर्ष 2016 आया था आदेश
दो साल पहले राज्य शासन ने निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों से पाठ्यक्रम कराने के संबंध में आदेश जारी किया था। इस आदेश के जारी होने से अभिभावकों की बहुत बड़ी चिंता दूर हो गई थी मगर इस आदेश के विरोध में निजी स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन हाईकोर्ट चला गया था तब से यह मामला पेंडिंग पड़ा है। निजी स्कूल कक्षा पहली से आठवीं तक कोई आदेश नहीं होने का हवाला देकर बच्चों के अभिभावकों पर निजी प्रकाशनों की किताबें खरीदने का बोझ डाल रहे हैं।
ऐसे होती है सांठगांठ
विभिन्न कक्षाओं की किताबें छापने वाले निजी प्रकाशन सीधे ही अपने प्रतिनिधियों को स्कूल संचालकों से मिलने भेजते हैं। इस मीटिंग में स्कूल में कक्षाओं के स्तर और उनमें पढऩे वाले बच्चों के मान से कमीशन तय होता है। कमीशन तय होने के बाद निजी प्रकाशन शहर के इक्का-दुक्का बुक सेलरों से मीटिंग कर उन्हें अपने डिपो के तौर पर तैयार करते हैं और किताबों की खेप पहुंचाते हैं वहीं स्कूल प्रबंधन अपने यहां पढऩे वाले बच्चों को संबंधित डिपो से किताबें खरीदने के लिए भेजते हैं। ऐसा ही पैटर्न स्कूल यूनिफॉर्म में अपनाया जाता है।
अब समझें किताबों के रेट में अंतर का गणित
निजी प्रकाशनों का कक्षा पहली और दूसरी की किताबों का सेट 2200 रुपए में मिलता है वहीं एनसीईआरटी में यही सेट 200 रुपए में मिलता है। कक्षा तीसरी से पांचवीं का सेट बाजार में 3 हजार से 3500 रुपए में दिया जा रहा है जबकि एनसीईआरटी में यही सेट 250 से 300 रुपए में मिलेगा। कक्षा छटवीं से आठवीं का बाजार में 4000 से 4500 रुपए में मिल रहा है जबकि एनसीआईआरटी का यही सेट 300 से 500 रुपए में आता है। इसी तरह कक्षा नवमीं और दसवीं की किताबों का सेट बाजार में 4 हजार से 5 हजार रुपए में मिल रहा है जबकि एनसीईआरटी में इन कक्षाओं का सेट 800 से 1000 रुपए में आ जाएगा।
एक अभिभावक ने बताया कि उसका बच्चा शहर के निजी स्कूलों में कक्षा तीसरी में पढ़ रहा है। स्कूल से पुस्तकें व कॉपी की लिस्ट जारी की गई है। जिसमें 22 कॉपी, 13 पुस्तकें हैं। इसके साथ ही 3 पैन, कवर चढ़ाने वाले पेपर व नेमप्लेट स्टीकर सहित 4 हजार 203 रुपए की सामग्री आई है। जिसमें 173 रुपए लैस करके टोटल 4 हजार 60 रुपए कीमत की पुस्तकें मिली है। वहीं स्टेशनरी संचालक पक्का बिल भी नहीं दे रहे हैं।
यूनिफॉर्म को लेकर हैंए जिसमें शिक्षा विभाग कार्रवाई भी करता है। किताबों को लेकर शिक्षा विभाग के पास कोई स्पष्ट निर्देश नही है इसी वजह से इस मामले में अब तक सीधी कार्यवाही नहीं हो पा रही है। गंभीर विषय है। इस मामले में हम जल्द ही स्कूल प्रबंधकों से चर्चा कर कोई हल निकलवाएंगे।
अशोक झारिया, जिला शिक्षा अधिकारी

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो