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दूसरी तीसरी पीढ़ी संभाल रही रामलीला की जिम्मेदारी

locationमंडलाPublished: Oct 21, 2021 11:52:44 am

Submitted by:

Mangal Singh Thakur

1964 से शुरू किया गया रामलीला का मंचन

दूसरी तीसरी पीढ़ी संभाल रही रामलीला की जिम्मेदारी

दूसरी तीसरी पीढ़ी संभाल रही रामलीला की जिम्मेदारी

मंडला. वर्ष 1964 में शुरू हुई रामलीला में आज भी तालियों की गूंज सुनाई देती है। उत्साह के साथ स्थानीय कलाकार यहां रामलीला का मंचन करते हैं। जिसे देखने के लिए आसपास के लोग भी पहुंचते हैं। नवरात्र के दौरान चले रामलीला में खासी भीड़ देखने को मिली। जानकारी के अनुसार लफरा में वर्ष 1963 में ग्राम के कुछ युवाओं ने दुर्गा प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया था। ग्राम के बुजुर्गों से सलाह मशविरा कर ग्राम के ह्रदय स्थल गांधी चौक में मूर्ति स्थापित की गई। गांधी चौक में पंडाल के लिए उचित व्यवस्था न होने के चलते गांधी चौक में निवास रत स्व बद्री प्रसाद तिवारी ने अपने मकान का एक कमरा दुर्गा जी स्थापित करने के लिए ग्राम के नवयुवकों को दिया। उत्साही युवाओं ने मंडला से मूर्ति लाकर गांधी चौक में मूर्ति स्थापित की। तत्कालीन समय में क्षेत्र में बम्हनी बंजर व सिलगी में रामलीला का आयोजन होता था, लफरा के युवाओं ने भी रामलीला करने की ठानी और मंच बनाने से लेकर कलाकार तक चयन किया गया। तत्कालीन युवाओं में ग्राम के स्व रामेश्वर प्रसाद पटेल, स्व धनेश्वर प्रसाद पटेल की अगुवाई में उन्ही के मकान में बैठक हुई। रामलीला के पात्रों का चयन हुआ। जिसमें स्व प्रकाश चंद तिवारी, प्रभात चंद उपाध्याय, जगदीश प्रसाद श्रीवास, मल्लू लाल झरिया, अधीन लाल झरिया, ओमकार कार्तिकेय, स्व भगवान दास कार्तिकेय, स्व सियाराम कार्तिकेय, स्व मल्लु लाल हरदहा, स्व झाम सिंह हरदहा, जागे लाल श्रीवास, डीहा राम हरदहा, नंदु लाल केवट, स्व छंगे लाल मरकाम, स्व अमर लाल हरदहा, स्व सुखलाल यादव, स्व गणेश पटेल, स्व सुरेश चंद तिवारी के बीच पात्रों का चयन किया गया। स्व गणेश हरदहा को रामलीला मंचन की जानकारी दी। वे गोटेगांव नरसिंहपुर पर में अपनी निजी रामलीला मंडली चलाते थे, उन्हें ही रामलीला मंचन की कमान सौंपी गई। स्व गणेश हरदहा द्वारा सभी लड़कों को रामलीला का मंचन सिखाया गया। रामलीला के पहले वर्ष कपडों, साजोसामान, पर्दों की कमी रही। जगदीश श्रीवास वरिष्ठ कलाकार ने बताया कि पहले वर्ष जो दर्शकों से बतौर इनाम की राशि मिली, चंदा स्वरूप गांव से सहयोग मिला। उससे रामलीला में उपयोग आने वाले साजो सामान की व्यवस्था बनाई गई। पहले वर्ष लालटेन के उजाले में रामलीला का मंचन किया गया फिर 1965 में उजाले के लिए गैस बत्ती का उपयोग किया जाने लगा। कलाकारों की सुंदरता बढ़ाने कपड़े क्रीट मुकुट की व्यवस्था बनाई गई। आसपास के लगभग बीस गांव से जनता लफरा रामलीला देखने आने लगी। मंडल का नाम रूप कला नवयुवक रामलीला मंडल रखा गया। तब से रामलीला आज भी अनवरत रूप से चल रही है। आज भी लफरा के रामलीला की चर्चा लोगों के जुबान पर होती है। क्षेत्र में कई जगह रामलीला मंचन प्रतियोगिता हुई और लफरा रूप कला मंडल ने अपनी कला से पुरस्कार जीते। वर्तमान समय में उन्ही पुराने कलाकारों में किसी की तीसरी पीढ़ी तो किसी की दूसरी पीढ़ी रामलीला मंचन कर बुजुर्गों की विरासत संभाले हुए है।

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