कतला, रोहू, मृगल की मांग अधिक
बीज उत्पादन केन्द्रों में मछलियां जब तैयार हो जाती है तो इन्हें अलग-अलग श्रेणियों में बेचा जाता है तथा मछली पालक इन्हें खरीदकर ले जाते हैं। पांच दिन के जो मिक्चर होते हैं इसमें कतला, रोहू, मृगल, कामन कार्क, जीरा साईज मछलियां कहलाती हैं इन्हें 830 रुपए प्रति लाख के भाव से बेचा जाता है। वहीं 25 दिन वाले मछलियों को 85 सौ रुपए प्रति लाख के भाव से बेचा जाता है। मत्स्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष 13 करोड़ मत्स्य बीज उत्पादन करना है। कतला की मांग सबसे अधिक होती है।
सहायक संचालक मत्स्य उद्योग हेमंत कुमार भगत ने बताया कि कुछ वर्षों से कम वर्षा और बढ़ते तापमान का प्रभाव मत्स्य पालन पर भी पड़ा है। विभिन्न मत्स्य समितियों, जिन्होंने पट्टे में तालाब लिए हैंए जिन्होंने नर्सरी बनाई हुई है इसके साथ ही जो मत्स्य व्यवसाय से जुड़े लोग हैं वे बीजों की मांग करते हैं। जिले में बनाए गए चार केन्द्रों से इन बीजों का वितरण निर्धारित दरों पर किया जाता है। गर्मी के समय तालब में मछलियों को जीवित रखने के लिए लगातार साफ पानी उपलब्ध कराना पड़ता है। हाल ही दिवारा ग्राम में कम पानी होने के कारण ऑक्सीजन की कमी हो गई थी। जिसे तीन चार क्विंटल मछली की मौत हो गई। तालाब में मछली पालने वाली समितियां बोर, नहर या अन्य साधनों से तालाब में लगातार साफ पानी पहुंचा रही है जिससे पानी की कमी ना हो और ऑक्सीजन की पूर्ति होती रही।
तीन हजार रुपए मिलेगा भत्ता
विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिले में 92 मछुआ समितियां कार्य कर रही है। एक समिति में 20-25 सदस्य होते हैं। बताया गया कि 16 जून से 15 अगस्त तक मछली मारने पर प्रतिबंध होता है। इस दौरान समितियों के सदस्य को गुजारा भत्ता के रूप में 15 सौ रुपए केन्द्र व 15 सौ रुपए राज्य सरकार द्वारा दिए जाते हैं। इसके लिए सदस्यों से भी 15 सौ रुपए सदस्य जमा कराए जाते हैं। 15 सौ के एवज में 3 हजार रुपए सदस्यों को दिए जाते हैं।
आज से मछली मारने पर प्रतिबंध
विभाग से मिली जानकारी के अनुसार आज से 15 अगस्त तक वर्षा ऋतु में सम्पूर्ण जिला अंतर्गत मत्स्याखेट एवं मत्स्य परिवहन निषिद्घ किया गया है। उल्लंघन पर मप्र मत्स्य क्षेत्र अधिनियम 1981 की धारा एक के तहत एक वर्ष तक कारावास व 5 हजार रुपए तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाता है। पिछले वर्ष तीन केस बनाए गए थे जिनसे आधा क्विंटल से अधिक मछली जब्त की गई थी। धारा तीन के अंतर्गत उल्लघंनकर्ता मत्स्य परिवहन के उपयोग में लाए जाने वाले पशुओं, गाडिय़ों, जलयानों, नौकाओं के अधिगृहण का भी प्रावधान है। इस दौरान मछुआरे ऐसे जलाशयों में मछली मार सकते हैं जो नदी नाले की श्रेणी में नहीं आते। किसान अपने खेतों में छोटा तालाबनुमा बनाकर मछली पालन कर सकते हैं। मछली पालन करने व संरक्षण, संवर्धन करने के लिए मत्स्य विभाग से मदद दी जाती है।
इनका कहना
13 करोड़ मछली बीज (स्पान) का लक्ष्य मिला है। बारिश शुरू होने के बाद से कार्य शुरू कर दिया जाएगा। सभी केन्द्रों में विभाग ने तैयारी पूरी कर ली है। किसान भी अपने तालाब नुमा खेत में मत्स्य पालन कर सकते हैं।
हेमंत कुमार भगत, सहायक संचालक मत्स्य उद्योग