अखिल ने बताया कि कृषि क्षेत्र में उसका रूझान पहले से था। पिता एड सीबी पटेल के मार्गदर्शन पर उन्होंने तीन चार साल पहले शुरूआत की थी। बाद में नौकरी लगने के बाद भोपाल चले गए। अब भी नील गिरी गाय, उद्यानकी व अन्य कार्य चल रहे हैं। जिससे से वे दूसरों को भी रोजगार देने में सक्षम होने लगे हैं। अखिल की मानें तो मशरूम की खेती के लिए बाजार में अभी कोई ज्यादा कंप्टीशन भी नहीं है। इसलिए इस समय मशरूम की खेती में बेहतर तरीके से काम करके ज्यादा से ज्यादा लाभ लिया जा सकता है।
कृषि विज्ञानिक डॉ विशाल मेश्राम ने बताया कि वर्तमान में गरीब कल्याण रोजगार अभियान अन्तर्गत प्रवासी श्रमिको को आत्म निर्भरता के उदï्देश्य से रोजगार से जोडऩे का कार्य किया जा रहा है। मशरूम पर चलाए जा रहे ट्रायल से कृषि क्षेत्र में नवाचार करते हुए किसानों और युवाओं को अच्छे फायदे से आर्थिक हालत में सुधार करने का कारगर कदम साबित हो रहा है। अब पढ़े-लिखे युवाओं में मशरूम की खेती के लिए ट्रेनिंग लेने की होड़ शुरू हो गई है। इसमें ग्रामीण युवा अगर खुद का इंटरप्रेट तैयार करके धंधा करेंगे तो आत्मनिर्भर भारत के लिए सबसे सस्ता सुंदर टिकाऊ व्यवसाय है। मशरूम की वैल्यू काफी ज्यादा है। ऐसे में अगर खुद युवा इसको करेंगे और दूसरों को सिखाएंगे तो रोजगार अच्छा दे पाएंगे। कृषि विज्ञान केन्द्र तिंदनी में युवाओं को कम लागत से अधिक मुनाफा लेकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह से मशरूम उत्पादन करने की ट्रेनिंग दी जा रही है। किसी कमरे में कम जगह में मटका मशरूम और ढींगरी मशरूम का उत्पादन किया जाए तो अच्छा फायदा लिया जा सकता है।