scriptआज से 16 दिवसीय श्राद्ध शुरु | 16 day shradh starts from today | Patrika News

आज से 16 दिवसीय श्राद्ध शुरु

locationमंदसौरPublished: Sep 14, 2019 12:15:59 pm

Submitted by:

Vikas Tiwari

आज से 16 दिवसीय श्राद्ध शुरु

mandsaur news

mandsaur news

मंदसौर.
आज से १६ दिवसीय श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो रही है। भाद्र पद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष कहलाता हैं। हमारे राष्ट्र की ऋषि परंपरा में श्राद्ध पक्ष को भी बहुत महत्व दिया और देवकार्य से भी ज्यादा पितृ कार्य कोअहम माना गया है। देवताओं की पूजन-अर्चन से भी ज्यादा हमारी संस्कृति में श्राद्ध को महत्व देते हुए १६ दिन का सबसे अधिक समय दिया है। श्राद्ध में पितृों की आत्मा को संतुष्ट कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए सभी अपने-अपने पितृों की पूजन करते है।
हमारी संस्कृति के जनक ऋषियों ने अद्भुत चिंतन करते पितृ पक्ष को कई मान्यताओं के तहत अहम बनाया है। श्राद्ध के १६ दिन की तिथि में अपने पूर्वजों का देहांत होता है, श्राद्ध पक्ष की उसी तिथि को उनका श्राद्ध कर्म करते है। इसके पीछे यह मान्यता है कि पितृ पक्ष में मृत पूर्वजों की आत्मा पितृ लोक से धरती पर आती है। यदि हम श्राद्ध आदि विधि से उन्हें संतुष्ट कर देते हैं तो पितृ आशीर्वाद देते हैं। इसलिए श्राद्ध पक्ष में पूर्ण विधि.विधान से श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
श्राद्ध कर्म में इन बातों का रखें विशेष ध्यान
एस्टोलॉजर रवीशराय गौड़ ने बताया कि पितृ पक्ष में पितरों को याद किया जाता है और उनकी आत्मा की संतुष्टि के लिए तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष में घर के पितरों के लिए उपाय किए जाते हैं। कुछ लोगों की कुंडली में पितृदोष का योग बनता है। जिन लोगों की कुंडली में अगर पितृ दोष होता है, उन्हें संतान से जुड़ी परेशानियां बनी रहती हैं। इसके अलावा घर में पैसों की तंगी और बीमारियां भी बनी रहती हैं। ज्योतिष में पितृ दोष से बचने के कई उपाय भी बताए गए हैं। देवताओ से पहले पितरो को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है।
पितृ ऋण से मिलती है मुक्ति
गौड़ के अनुसार 16 दिन नियम पूर्वक कार्य करने से पितृ-ऋण से मुक्ति मिलती है।् देवतुल्य स्थिति में तीन पीढिय़ों के पूर्वज गिने जाते हैं। पिता को वासु, दादा को रूद्र और परदादा को आदित्य के समान दर्जा दिया गया है। श्राद्ध मुख्य तौर से पुत्र, पोता, भतीजा या भांजा करते हैं।् जिनके घरों में पुरुष नहीं वहां महिलाएं भी कर सकती है।
तीन पीढिय़ों तक श्राद्ध का बताया है विधान
श्राद्ध तीन पीढिय़ों तक करने का विधान बताया गया है। यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं। इससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सके। तीन पूर्वज में पिता को वसु के समान, रुद्र देवता को दादा के समान तथा आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
पितृ हमारे सुख और स्थायीत्व के स्वामी होते है
ज्योतिषविद गौड़ बताते है कि सनातन ज्योतिषीय गणना के अनुसार पितृ हमारी कुंडली में सुख और स्थायीत्व के स्वामी होते हैं। स्थायीत्व यानी नौकरी-व्यापार में तरक्की और स्थायित्व, धन का प्रवाह लगातार बना रहे। शादी, संतान का संतुलन का सुख हमें मिले, ऐसा पितरों की कृपा से ही संभव हो पाता है। परिवार की वंश वृद्धि और सुख भी हमें उन्हीं के आशीर्वाद से मिलते हैं। साल में एक बार इस श्राद्ध काल, यानी पितृ पक्ष में ऐसा कर सकते हैं। हमें अपने पूर्वजों का आशीर्वाद पाने का बेहतर अवसर होता है। ज्योतिष में पितृ दोष के निवारण के भी कई उपाए बताए है। जिन्हें पितृ दोष होता है। वह यह उपाए करते है। साथ ही श्राद्ध पक्ष में ब्राह़्मणों को भोजन कराने का महत्व है। वहीं ब्राह्मणों को दक्षिणा देने और भोजन के समय उनका आसान कैसा हो। इन बातों का भी विशेष महत्व होता है। और भोजन के दौरान उनका बर्तन कैसा हो तो उनको दक्षिणा में देने वाली वस्तु से लेकर उनका भोजन किस प्रकार का इसका भी महत्व होता है। इतना ही नहीं भोजन परोसने का भी महत्व बताया है। तो श्राद्ध किस स्थान पर करना ह
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो