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बैर की भावना का त्याग करो, क्षमापना को अपनाओ

locationमंदसौरPublished: Sep 03, 2019 11:20:36 am

Submitted by:

Nilesh Trivedi

बैर की भावना का त्याग करो, क्षमापना को अपनाओ

बैर की भावना का त्याग करो, क्षमापना को अपनाओ

बैर की भावना का त्याग करो, क्षमापना को अपनाओ

मंदसौर.
मनुष्य जीवन में बैर की भावना सदैव ही हानि पहुंचाती है। लेकिन यदि हम बैर भावना को छोड क्षमापन के गुण को अपनाते है तो जीवन में आत्म सुख पाते है। कई जन्मों के बैर के कारण कुर्मठ को नरक गति मिली, जबकि भगवान पाश्र्वनाथ क्षमापना के गुण के कारण तीर्थकर भगवान बन गए। जीवन में जो भी क्षमापना के कारण गुण के कारण तीर्थकर भगवान बन गए। जीवन में जो भी क्षमा का गुण आत्मसात करता है वह इस भव में तो सुख पाता है साथ ही अगले भव मे भी सुख पाता है। यह बात साध्वी सुप्रसन्नाश्रीजी ने कही। सोमवार को रूपचांद आराधना भवन में प्रर्यूषण पर्व के अंतिम दिवस संवत्सरी पर्व पर आयोजित धर्मसभा में कहा। राजा उदयन व चंद्रप्रघोत का वृतांत सुनाया। चातुर्मास प्रारंभ होने के कारण राजा उदयन ने दस राजाओं के साथ एक ही स्थान पर डेरा डाल दिया। इसी कारण उस नगर का नाम दशपुर पडा आगे जाकर यही नगरी मंदसौर कहलायी। राजा उदयन ने चंद्रपघोत को बंदी बनाकर उसके शरीर पर ममदसी पति लिखवाया। प्रर्यूषण पर्व के अंतिम दिवस संवत्सरी के उपवास के दिन राजा उदयन ने दशपुर नगर की इस पुण्य धरा पर अपने शत्रु राजा चंद्रपघोत जो कि बंदी अवस्था में था उसे साथ क्षमापना की लेकिन चंद्रपघोत द्वारा क्षमापना करने पर जब कटु वचन राजा उदयन को सुनाए गए तो उसने उसका राज्य पुन लौटा दिया। प्रर्यूषण पर्व हमें क्षमापना के गुण अपनाने की प्रेरणा देता हैं।

बारसा सूत्र वैराया, हुई ज्ञान पूजा
धर्मसभा के प्रारंभ में सवंत्सरी पर्व पर साध्वींगणो द्वारा बारसा सुत्र का वाचन किया गया। सुत्र शास्त्र वैराने का धर्मलाभ राकेश कुमार कांतिलाल दुग्गड परिवार ने लिया। इस अवसर पर ज्ञानपूजा करने का धर्मलाभ शांतिलाल डोसी कर व अन्य ने लिया। संचालन श्रीसंध अध्यक्ष दिलीप डांगी ने किया। धर्मसभा में बडी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे।

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