scriptदशहरा विशेष: यहां है रावण की ससुराल, दामाद के तौर पर होती है पूजा | Dussehra Special: Here is Ravana's in-laws, worshiped as son-in-law | Patrika News

दशहरा विशेष: यहां है रावण की ससुराल, दामाद के तौर पर होती है पूजा

locationमंदसौरPublished: Oct 14, 2021 11:32:49 am

Submitted by:

Hitendra Sharma

जमाई रावण की प्रतिमा के आगे घूंघट में जाती हैं महिलाएं, करती हैं पूजा, सुबह पांव में लच्छा बांधकर करते हैं पूजा तो शाम को गोधुलि बेला में करते हैं दहन। पैर में धागा बांधने से दूर होती है बीमारी, रावण की प्रतिमा की वर्षो से पूजा करता आ रहा नामदेव समाज।

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मंदसौर. अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाए जाने वाले दशहरे से मंदसौर की अनोखी मान्यता जुड़ी हुई है किवंदतियों के अनुसार देश में जिन कुछ स्थानों को रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका माना जाताा है, उनमें मंदसौर शामिल है। मंदसौर में इसीलिए दशानन को अपना जमाई माना जाता है और जमाई के रूप में ही उसकी पूजा होती है।

जमाई होने के कारण ही रावण की प्रतिमा के सामने महिलाएं घूंघट में जाती हैं। दशहरे के दिन सुबह रावण की प्रतिमा की पूजा-अर्चना होती है और शाम को गोधुलि बेला में दहन किया जाता है। यह सारी आवभगत नामदेव समाज की देखरेख में खानपुरा में होती है। पूर्व में शहर को दशपुर के नाम से पहचाना जाता था। वहां रावण की स्थायी प्रतिमा बनवाई हुई है। खानपुरा क्षेत्र में रुंडी नामक स्थान पर यह प्रतिमा स्थापित है। समाज इस प्रतिमा की पूजा-अर्चना करता है।

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गधे का सिर लगाया
बताया जाता है कि 200 साल से भी अधिक समय से समाजजन रावण प्रतिमा की पूजा करते आ रहे हैं। पहले पुरानी मूर्ति थी। अब इसे नए स्वरूप में स्थापित किया गया है। इसके 10 सिर हैं, लेकिन उसकी बुद्धि भ्रष्ट होने के प्रतीक के रूप में मुख्य मुंह के ऊपर गधे का सिर लगाया गया।

धागा बांधने से दूर होती है बीमारी
यहीं नहीं मान्यता है कि यहां रावण के पैर में धागे बांधने से बीमारियां दूर होती है। इस गांव में लोग रावण को बाबा को कहकर पूजते हैं। धागा दाहिन पैर में बांधी जाती है। साथ ही क्षेत्र की खुशहाली, समाज सहित शहर के लोगों को बीमारियों से दूर रखने एवं प्राकृतिक प्रकोप से बचाने के लिए प्रार्थना करते हुए पूजा-अर्चना करते हैं।

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मांगते हैं क्षमा
दशहरे के दिन यहां नामदेव समाज के लोग जमा होते हैं। फिर वहां पूजा-पाठ करते हैं। उसके बाद राम और रावण की सेनाएं निकलती हैं। रावण के वध से पहले लोग रावण के समक्ष खड़े होकर क्षमा-याचना मांगते हैं। इस दौरान कहते हैं कि आपने सीता का हरण किया था, इसलिए राम की सेना आपका वध करने आई है। उसके बाद प्रतिमा स्थल पर अंधेरा छा जाता है और फिर उजाला छाते ही राम की सेना जश्न मनाने लगती है।

अच्छाई के लिए पूजा, बुराई के कारण दहन
नामदेव समाज के अध्यक्ष अशोक बघेरवाल ने बताया कि सालों पहले से यह परंपरा चली आ रही है। हमारे पूर्वज भी पूजा करते आए हैं। हम भी उसी का निर्वहन कर रहे हैं। किवंदती के अनुसाद रावण को मंदसौर का दामाद माना गया है। रावण प्रकाण्ड विद्वान ब्राह्मण और शिवभक्त था। ऐसे में उसकी अच्छाइयों और प्रकाण्डता को लेकर पूजा की परंपरा शुरू हुई। इसी के चलते सालों से नामदेव समाज पूजा करता आया है और समाज यह परंपरा अभी भी निभा रहा है। रावण ने सीताहरण जैसा काम किया था। इसी बुराई के चलते रावण दहन भी शाम को गोधुलि बेला में समाजजन करते हैं।

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