मंदसौर

पिछले साल छिंदवाड़ा में दिखा अब मालवा में ‘फाल वर्मी कीट का प्रकोप

पिछले साल छिंदवाड़ा में दिखा अब मालवा में ‘फाल वर्मी कीट का प्रकोप

मंदसौरJul 24, 2019 / 11:47 am

Nilesh Trivedi

पिछले साल छिंदवाड़ा में दिखा अब मालवा में ‘फाल वर्मी कीट का प्रकोप


मंदसौर.
पहली बार मालवा में मक्का की फसल पर फालआर्मी वर्म का प्रकोप आया है। जिले में मक्का की फसल पर फाल आर्मी वर्म कीट के बढ़ते प्रकोप के चलते जिले में अब तक ५ से १० प्रतिशत मक्का की फसल प्रभावित हो चुकी है। मालवा में पहली बार दिखे इस कीट ने कृषि विभाग की नींद उड़ा दी है। किसान जहां अपनी मक्का फसल के नष्ट होने को लेकर परेशान है तो विभाग इसे नियंत्रण करने के तरकीब निकालने में लगा हुआ है। फसल पर इसके प्रभाव को रोकने के लिए तमाम प्रकार के तरीको को अपनाने का दौर शुरु हो चुका है। मंगलवार को भी कृषि विभाग ने मंदसौर, सीतामऊ, मल्हारगढ़ क्षेत्र में दवा विक्रय करने वाली कंपनियों के डीलरों की बैठक बुलाई और उन्हें इस कीट के बारें में जानकारी देते हुए इससे फसल को बचाने के तरीको की जानकारी दी।
साथ ही वैज्ञानिक डॉ. जीएस चुंडावत को भी बुलाया। वैज्ञानिक ने तकनीकि पहलूओं पर डीलर को इसकी जानकारी दी। इसके अलावा गरोठ, भानपुरा व सुवासरा बेल्ट के डीलरों की बैठक इसे लेकर बुधवार को होगी। विभाग के अधिकारियों ने किसानों तक इससे बचाव और सावधानी की तमाम बातें पहुंचा दी है, लेकिन अभी इस कीट पर कंट्रोल जिले में नहीं हो पाया है।

प्रदेश में छिंदवाड़ा में दिखा था, मालवा में पहली बार
कृषि विभाग के उपसंचालक डॉ. एएस राठौर ने बताया कि फाल आर्मी वर्म का प्रकोप जिले में पहली बार देखने को मिला है। अमेरिका के बाद दक्षिण अफ्रीका के साथ ही अन्य देशों में इस कीट का प्रकोप पाया गया था। और देश में कर्नाटक सहित अन्य प्रदेशों में पिछले सालों में दिखा था। प्रदेश में सबसे पहले फाल आर्मी वर्म कीट छिंदवाड़ा में देखा गया था। पिछले साल ङ्क्षछदवाड़ा में था। इस बार मालवा और जिले में इसका प्रकोप आया है। इसे नियंत्रित करने के लिए उपाय तो सुझाव है।
पौधों पर नहीं दिखता असर, मक्की कर देता है खत्म
जिले में वर्तमान स्थिति तक १० प्रतिशत मक्का की फसल को यह कीट प्रभावित कर चुका है। हालांकि विभाग इसका सर्वे करवा रहा है। लेकिन जानकारी के अनुसार मक्का में लगने वाला यह कीट पौधें से ही मक्का तक पहुंचाते है लेकिन मक्की और हर पत्तें के बीच पहुंचता है। किसानों को बाहर से पता नहीं चलता है। क्योंकि इससे न तो पौधों की चाल प्रभावित होगी और न हीं उसका हरा पन। पौधें में किसी प्रकार का अंतर नहीं आएगा, लेकिन यह मक्का को खत्म कर देता है।

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