दो हिस्सों में बना फोरलेन
जावरा-नयागांव प्रोजेक्ट ९०७ करोड़ और लेबड़ से जावरा ९०१ करोड़ में बना है। दो हिस्सो में लेबड़ से लेकर नयागांव तक २६० किमी तक फोरलेन बना था। अनुबंध के अनुसार २१ सालों तक टोल कंपनियां मेटनेंस के साथ यहां टोल वसूलेगी। समयावधि बीतने में अभी १२ साल का समय बचा है और अभी ही प्रोजेक्ट की लागत पर वसूली के आंकड़ों को कंपनियों ने पार कर लिया है। इसमें लेबड़-नयागांव प्रोजेक्ट में ९०१ करोड़ की लागत के विरुद्ध ११, ३९,८०,८१ १०८ करोड़ की वसूली अब तक कर ली है। वहीं जावरा-नयागांव प्रोजेक्ट जो ९०७ करोड़ का है। इस पर वसूली १२, ३७,२५,२८,१२८ करोड़ की की जा चुकी है। यह जानकारी मंदसौर विधायक के जवाब में विधानसभा की कार्रवाई के दौरान सदन में सरकार द्वारा लिखित में दी गई।
फोरलेन प्रोजेक्ट में धरातल पर यह है खामियां
-सेफ्टी ऑडिट २०१६ में हुआ था। जो हर साल होना चाहिए। इसमें हाईवे के सभी चौराहों पर हर जगह सुरक्षा के इंतजाम किए जाते है। एमपीआरडीसी द्वारा नियुक्त कंपनी द्वारा यह किया जाता है। यह होता तो फोरलेन के चौराहें पर सुरक्षा इंतजाम होते और एक्सीटेंडल जोन जो चिंहित है। वहां पर्याप्त इंतजाम किए जाते।
-ले बाय बनाए तो गए, लेकिन यहां सुविधा नहीं होने के कारण ट्रक रुकते ही नहीं। इसमें वाहनों को धोने से लेकर शौचालय में तमाम व्यवस्था और पानी की टंकी से लेकर लाईन व अन्य सुविधा होना जरुरी है, लेकिन फोरलेन पर स्थित ले बाय में कही पर भी ऐसा नहीं है।
-डिवाईडर पर नहीं है पौधे। फोरलेन निर्माण के समय जो पेड़ कटे थे। उस समय इस प्रोजेक्ट में बताया था कि कंपनी १ के बदल १० पेड़ लगाएगी। लेकिन न तो फोरलेन पर पेड़ दिख रहे है और न हीं डिवाईडरों में पौधें।
-लेबड़ से लेकर नयागांव तक इस २६० किमी के प्रोजेक्ट में ८७ पुलियाएं ऐसी है। जिन्हें नया नहीं बनाया गया है। जो एम्बुलेंंस है वह सामान्य चला रखी है। जबकि वह आईसीयू स्तर की होना चाहिए।
सदन में दी गलत जानकारी
सेफ्टी ऑडिट होता तो एक्सीटेंड के पर्याय बन गए चौराहों पर सुरक्षा के इंतजाम होते। ले बाय पर भी कोई सुविधा नहीं और सदन में कई जानकारी दी गई। फोरलेन पर अनेक खामिया है। प्रोजेक्ट की जितनी लागत है। उससे २००-२०० करोड़ अधिक अब तक कंपनिया वसूल चुकी है और अभी १२ साल का और समय बाकी है। हर साल ७ प्रतिशत वृद्धि कर रहे है। टोलबूथों को बंद करने की मांग सदन में उठाई है। फोरलेन को लेकर जो जानकारी सदन में दी वह गलत है। -यशपालसिंह सिसौदिया, विधायक
दिए जाते है निर्देश
विभाग द्वारा निर्देश दिए जाते है। हर ६ माह में भोपाल से भी निर्देश जारी होते है। अनुबंध में शामिल सभी काम पूरे करने के बाद ही टोल शुरु करने की अनुमति दी जाती है। इसके बार कोई नया काम करवाने में संशोधन कराना पड़ता है। इसलिए दिक्कत होती है। डिवाईडरों पर पौधें लगाने का काम शुरु कर दिया है। -संतोष सुपेकर, प्रबंधक, एमपीआरडीसी