script900 करोड़ के प्रोजेक्ट की लागत और टोल कंपनियों ने आमजन से वसूल लिए 11०० करोड़ | forlene news in stata high way | Patrika News

900 करोड़ के प्रोजेक्ट की लागत और टोल कंपनियों ने आमजन से वसूल लिए 11०० करोड़

locationमंदसौरPublished: Jul 25, 2019 12:46:39 pm

Submitted by:

Nilesh Trivedi

900 करोड़ के प्रोजेक्ट की लागत और टोल कंपनियों ने आमजन से वसूल लिए 11०० करोड़

patrika

900 करोड़ के प्रोजेक्ट की लागत और टोल कंपनियों ने आमजन से वसूल लिए 11०० करोड़

मंदसौर.
फोरलेन पर टोलबूथों द्वारा वसूली जा रही राशि प्रोजेक्ट की लागत से भी अधिक हो गई है। और अभी १२ साल का और समय बचा है। हर साल टोल पर ७ प्रतिशत वृद्धि कर रहे है। कहने को यह सब अनुबंध के आधार पर कर रहे है, लेकिन अनुबंध में तो कई नियम और भी शामिल है, लेकिन उन्हें पूरा नहीं करने के बाद इनसे कोई सवाल तक नहीं कर रहा है। भले ही हाईवे पर सुरक्षा के इंतजाम अब तक नहीं हुए। कागजों में तो तमाम जानकारियां पुख्ता होने के साथ सबकुछ ओके रिपोर्ट दी जा रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर फोरलेन पर अनेक जगह डिवाईडर टूटे पड़े है तो रैलिंग से लेकर लगे पाईप भी टूटने के बाद अब तक नहीं लगाए गए। जो नालियां बनी है। ऐसे अनेक चौराहें है। जहां आए दिन हादसें हो रहे है और लोगों की जान जा रही है। बावजूद सुरक्षा के इंतजाम अब तक नहीं किए गए है। विडबंना तो यह है कि जवाबदार विभाग व सरकार भी इन कंपनियों पर नकले नहीं कस पा रही है और धरातल पर हालात जस के तस बने हुए है।

दो हिस्सों में बना फोरलेन
जावरा-नयागांव प्रोजेक्ट ९०७ करोड़ और लेबड़ से जावरा ९०१ करोड़ में बना है। दो हिस्सो में लेबड़ से लेकर नयागांव तक २६० किमी तक फोरलेन बना था। अनुबंध के अनुसार २१ सालों तक टोल कंपनियां मेटनेंस के साथ यहां टोल वसूलेगी। समयावधि बीतने में अभी १२ साल का समय बचा है और अभी ही प्रोजेक्ट की लागत पर वसूली के आंकड़ों को कंपनियों ने पार कर लिया है। इसमें लेबड़-नयागांव प्रोजेक्ट में ९०१ करोड़ की लागत के विरुद्ध ११, ३९,८०,८१ १०८ करोड़ की वसूली अब तक कर ली है। वहीं जावरा-नयागांव प्रोजेक्ट जो ९०७ करोड़ का है। इस पर वसूली १२, ३७,२५,२८,१२८ करोड़ की की जा चुकी है। यह जानकारी मंदसौर विधायक के जवाब में विधानसभा की कार्रवाई के दौरान सदन में सरकार द्वारा लिखित में दी गई।

फोरलेन प्रोजेक्ट में धरातल पर यह है खामियां
-सेफ्टी ऑडिट २०१६ में हुआ था। जो हर साल होना चाहिए। इसमें हाईवे के सभी चौराहों पर हर जगह सुरक्षा के इंतजाम किए जाते है। एमपीआरडीसी द्वारा नियुक्त कंपनी द्वारा यह किया जाता है। यह होता तो फोरलेन के चौराहें पर सुरक्षा इंतजाम होते और एक्सीटेंडल जोन जो चिंहित है। वहां पर्याप्त इंतजाम किए जाते।
-ले बाय बनाए तो गए, लेकिन यहां सुविधा नहीं होने के कारण ट्रक रुकते ही नहीं। इसमें वाहनों को धोने से लेकर शौचालय में तमाम व्यवस्था और पानी की टंकी से लेकर लाईन व अन्य सुविधा होना जरुरी है, लेकिन फोरलेन पर स्थित ले बाय में कही पर भी ऐसा नहीं है।
-डिवाईडर पर नहीं है पौधे। फोरलेन निर्माण के समय जो पेड़ कटे थे। उस समय इस प्रोजेक्ट में बताया था कि कंपनी १ के बदल १० पेड़ लगाएगी। लेकिन न तो फोरलेन पर पेड़ दिख रहे है और न हीं डिवाईडरों में पौधें।
-लेबड़ से लेकर नयागांव तक इस २६० किमी के प्रोजेक्ट में ८७ पुलियाएं ऐसी है। जिन्हें नया नहीं बनाया गया है। जो एम्बुलेंंस है वह सामान्य चला रखी है। जबकि वह आईसीयू स्तर की होना चाहिए।

सदन में दी गलत जानकारी
सेफ्टी ऑडिट होता तो एक्सीटेंड के पर्याय बन गए चौराहों पर सुरक्षा के इंतजाम होते। ले बाय पर भी कोई सुविधा नहीं और सदन में कई जानकारी दी गई। फोरलेन पर अनेक खामिया है। प्रोजेक्ट की जितनी लागत है। उससे २००-२०० करोड़ अधिक अब तक कंपनिया वसूल चुकी है और अभी १२ साल का और समय बाकी है। हर साल ७ प्रतिशत वृद्धि कर रहे है। टोलबूथों को बंद करने की मांग सदन में उठाई है। फोरलेन को लेकर जो जानकारी सदन में दी वह गलत है। -यशपालसिंह सिसौदिया, विधायक

दिए जाते है निर्देश
विभाग द्वारा निर्देश दिए जाते है। हर ६ माह में भोपाल से भी निर्देश जारी होते है। अनुबंध में शामिल सभी काम पूरे करने के बाद ही टोल शुरु करने की अनुमति दी जाती है। इसके बार कोई नया काम करवाने में संशोधन कराना पड़ता है। इसलिए दिक्कत होती है। डिवाईडरों पर पौधें लगाने का काम शुरु कर दिया है। -संतोष सुपेकर, प्रबंधक, एमपीआरडीसी
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो