इस अज्ञानरूपी अंधकार को दूर कर आत्मज्ञान रूपी प्रकाश का बोध कराना है। भगवान को तन और धन की चाह नहीं मन अर्पित करना चाहिए। जिसके पास जो वस्तु पहले से प्राप्त है वहीं वस्तु उसे देने से उसे कोई लाभ नहीं। इस अवसर पर केशव सत्संग भवन की सराहना करते हुए स्वामी ने कहा कि सत्संग भवन के कण-कण में महापुरूषों की अमृतवाणी समायी हुई है। जिसकी अनुभूती आने वाले प्रत्येक सत्संगी को होती है। बाहर के अंधकार को तो हम विद्युत, मोमबत्ती, टार्च से मिटा सकते है।
बाहर का अंधकार उतना दु:ख नहीं देगा जितना भीतर अज्ञान का अंधकार कि मैं आत्मा नहीं शरीर हूं। भीतर का अंधकार तभी मिटेगा जब गीता ज्ञान का प्रकाश अंतकरण में उतरेगा। युवाचार्य महेशचैतन्य ने कहा कि संसार में सबसे बड़ा रोग है भवरोग। संसार भव सागर में गोते और थपेड़े नहीं खाते रहने और भव रोग मिटाने की एक मात्र औषधी है सज्जनों का संग। औंकारेश्वर के स्वामी वेदानंद ने कहा कि गीता उपदेश भगवान कृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर मानव मात्र के कल्याणार्थ दिया था।
धन के साथ धर्म का होना जरूरी
धन कमाना कोई बुरा नहीं परंतु धनोपार्जन का तरीका शुद्ध होना चाहिए। साथ ही धन के साथ धर्म कमाना नहीं भूलना चाहिए। गीता का प्रारंभ प्रथम श्लोक धर्म क्षेत्रे से हुआ है इसलिए चाहे अरबों खरबों की संपत्ति हो साथ नहीं आएगी परंतु यदि धर्म का थोड़ा भी अंश अर्जित है तो वह यहां भी सुख देगा और परलोक में भी काम आएगा। यदि हम हमारे आगे भवान को और पीछे संसार को रखेंगे तो संसार कभी दु:खदायी नहीं लगेगा। स्वामी देवस्वरूपानंद ने कहा कि दु:ख का कारण दूसरे नहीं हम स्वयं है। व्यक्ति दूसरों के कारण दु:खी. परेशान नहीं होता। वह खुद जब अपने धर्म.कर्म से विमुख हो जाता है तो दु:खी हो जाता है।
अर्जुन जब ठीक युद्ध के समय जब कौरवों के साथ मोहवश युद्ध करने से दु:खी हो गया परंतु गीता उपदेश सुनने के बाद जब धर्म युद्ध में प्रवृत्त हुआ तो संख्या में कौरव सेना की अपेक्षा कम होते हुए भी भगवान कृष्ण का साथ देने से विजयी हुए।
स्वामी अवधेशानंद, स्वामी सुजानानंद, स्वामी वासुदेवानंद, स्वामी घनश्याम, स्वामी प्रेमशिव, स्वामी चिंदानंद, स्वामी प्रेमशिव, स्वामी भरतपुरी, स्वामी देवानंद का गीता के महत्व को प्रतिपादित करते हुए जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान गीता को बताते हुए कहा कि चाहे आतंकवाद हो, अत्याचार, अनाचार जिससे सब कोई चिंतित है इन सबका उचित समाधान गीता में है। आचार्य राजेंद्र दीक्षित, नारायणप्रसाद शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए। कबीर पंथी संत कमलदास झांसी ने भजन प्रस्तुत किया। ट्रस्ट पदाधिकारियों ने सभी संतों का सम्मान कर आशीर्वाद ग्रहण किया। संचालन सचिव कारूलाल सोनी ने किया। आभार ट्रस्टी बंशीलाल टांक ने माना।
स्वामी अवधेशानंद, स्वामी सुजानानंद, स्वामी वासुदेवानंद, स्वामी घनश्याम, स्वामी प्रेमशिव, स्वामी चिंदानंद, स्वामी प्रेमशिव, स्वामी भरतपुरी, स्वामी देवानंद का गीता के महत्व को प्रतिपादित करते हुए जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान गीता को बताते हुए कहा कि चाहे आतंकवाद हो, अत्याचार, अनाचार जिससे सब कोई चिंतित है इन सबका उचित समाधान गीता में है। आचार्य राजेंद्र दीक्षित, नारायणप्रसाद शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए। कबीर पंथी संत कमलदास झांसी ने भजन प्रस्तुत किया। ट्रस्ट पदाधिकारियों ने सभी संतों का सम्मान कर आशीर्वाद ग्रहण किया। संचालन सचिव कारूलाल सोनी ने किया। आभार ट्रस्टी बंशीलाल टांक ने माना।