मंदसौर

शिव-पार्वती की इन गाथाओं के कारण हरतालिका तीज का है महत्व

शिव-पार्वती की इन गाथाओं के कारण हरतालिका तीज का है महत्व

मंदसौरAug 31, 2019 / 11:26 am

Nilesh Trivedi

शिव-पार्वती की इन गाथाओं के कारण हरतालिका तीज का है महत्व

मंदसौर.
1 सितंबर को हरतालिका तीज मनाई जाएगी। प्राचीन मान्यताओं के चलते इस व्रत का महिलाओं के लिए बड़ा महत्व है। यह तीज का त्यौहार भादो की शुक्ल को मनाया जाता हैं। इसमें भगवान शिव, माता गौरी एवं गणेश की पूजा की जाती है। रात के प्रहर में बालू से बने शिव-गौरी की पूजा की जाती है। महिलाओं द्वारा इस दिन रतजगा भी किया जाता है। शास्त्रों में भी इस व्रत के पीछे कई पौराणिक गाथाएं है। इसी के कारण इस का महत्व अधिक है।

ज्योतिष अनुसार 1 सितंबर को तीज मनाने उचित
एस्ट्रोलोजर रविशराय गौड़ ने बताया कि भारतीय ज्योतिष के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। पंचांगीय गणना और धर्मशास्त्रीय मान्यता के आधार पर इस बार ग्रह गोचर के तिथि से तीज को लेकर दो गणनाओं का अलग मत है। इसमें चित्रा पक्षीय पंचांग में हरतालिका तीज 1 सितंबर रविवार को सुबह 8.28 के बाद लगेगी। जो अगले दिन सोमवार को सुबह 8.58 तक रहेगी। वहीं ग्रहलाघवी पद्धति से निर्मित पंचागों में 2 सितंबर को हरतालिका तीज बताई गई है। इस दिन तृतीया तिथि 2 घंटे 45 मिनट रहेगी। इसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी। 2 को आधे दिन हरतालिका तीज है।

इसलिए हरतालिका पड़ा नाम
गौड़ ने बताया कि माता गौरी पार्वती रूप मेें भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। इसलिए उन्होंने कठोर तपस्या की थी। उस समय पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर लिया था। इस करण इस व्रत को हरतालिका कहा गया हैं। हरत का मतलब अगवा करना एवं आलिका मतलब सहेली। यानी सहेलियों द्वारा अपहरण करना हरतालिका कहलाता हैं।

हरतालिका तीज व्रत नियम
हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता हैं। पूरा दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जलग्रहण नहीं किया जाता। हरतालिका व्रत कुवांरी कन्या, महिलाओं द्वारा किया जाता हैं। व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता। इसे प्रतिवर्ष नियमो के साथ किया जाता हैं। इस व्रत के दिन रतजगा किया जाता हैं। पूरी रात महिलाएं एकत्र होकर शिव-भक्तिमय होकर नाच गाना एवं भजन करती हैं। जिस घर में हरतालिका व्रत होता हैं वहां पूजा का खंडन नहीं किया जा सकता है। हरतालिका के व्रत के साथ कई मान्यताएं जुड़ी है।

हरतालिका तीज पूजन में यह सामग्री करें उपयोग
तीज के इस व्रत में व्रत के साथ पूजन करने के दौरान फूल और पत्तियों का विशेष उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत, केले के पत्ते और सभी प्रकार के फल एवं फूल के पत्ते, बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनैव, वस्त्र, माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान इसमें चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, मेहंदी का उपयोग भी किया जाता है।

हरतालिका तीज व्रत की पूजन-विधि पूजन विधी
व्रत में पूजन प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय होता है। उस समय पूजन की जाती है। हरतालिका पूजन के लिए शिव-पार्वती एवं गणेश की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनाई जाती हैं। इसके अलावा कलश बनाया इसमें जलसे भरा एक लौटा रखकर श्रीफल उस पर रखते है। कलश का पूजन किया जाता हैं। इसके बाद गणेशजी और फिर शिव की पांच प्रहर में पूजा की जाती है। इस दौरान शिवमंत्र का जप एवं भजन कीर्तन के साथ भगवान आशुतोष को रिझाने का प्रयास महिलाएं करती है।

ऐसे करें पूजा
व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए की व्रत के दिन शाम के समय घर को तोरण आदि से सुशोभित कर आंगन में कलश रखकर उस पर शिव और गौरी की प्रतिष्ठा बनाएं। उनका विधि-विधान से पूजन करें। मां गौरी का ध्यान करें और जप करे। तीज की पूजा के दौरान कथा सुनने का विशेष महत्व होता है।

शिवजी ने माता पार्वती को यह समझाया था व्रत का महत्व
गौड़ ने बताया कि यह व्रत पति की कामना और पति की लंबी उम्र के लिए किया जाता हैं। भगवान शिव ने माता पार्वती को इस व्रत के बारें में विस्तार से समझाया था। इसमें गौरी ने सती के बाद हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। बचपन से ही पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में चाहती थी। इसके लिए तपस्या की। बारह वर्षो तक निराहार पत्तो को खाकर पार्वती ने यह व्रत किया था। भगवान विष्णु ने हिमालय से पार्वती का हाथ विवाह के लिए मांग।
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