scriptतैलिया तालाब के डूब क्षेत्र से फिर सैकड़ों बीघा जमीन बाहर | Hundreds of bigha land out of the submerged area of the lake pond | Patrika News

तैलिया तालाब के डूब क्षेत्र से फिर सैकड़ों बीघा जमीन बाहर

locationमंदसौरPublished: Dec 02, 2017 05:37:45 pm

Submitted by:

harinath dwivedi

रसूखदार लोगों की जमीनों की डूब क्षेत्र के बाहर होने पर उठे सवाल

patrika
मंदसौर. किसी जमाने में ४८४ बीघा क्षेत्र मेंं पहले तैलिया तालाब साल-दर-साल सिकुड़ता जा रहा है। दो दशक पहले से ही नियम के विपरीत डूब क्षेत्र में निर्माण कार्य शुरू हो गए थे। जल संसाधन विभाग ने कई बार आपत्तियां दर्ज करवाई। संबंधित लोगों को पत्र लिखे, राज्य शासन को रिपोर्ट भेजी पर जल संसाधन विभाग रसूखदार लोगों के सामने हार गया।
जानकारी के अनुसार कई रसूखदार लोगों ने डूब क्षेत्र में अपनी जमीनों पर कई फीट मिट्टी डालकर उसे ऊंचा कर लिया और जमीनों के नीचे तालाब को खतरनाक स्तर तक गहरा कर दिया। यहां तक कि तालाब के वेस्ट वियर की ऊंचाई भी कम की गई। बाद में राजस्व विभाग सहित अन्य लोग एनकेन प्रकारण अपनी जमीनों को डूब क्षेत्र से बाहर करवा लिया। यह सिलसिला १९९२ से आज तक चल रहा है। छह जून २०१७ को कलेक्टर न्यायालय ने केवल एक पार्षद के आवेदन और उस पर विधायक अनुशंसा के आधार पर ही करीब ३ दर्जन सर्वे नंबर की सैकड़ों बीघा जमीन तत्कालीन कलेक्टर स्वतंत्र कुमार ङ्क्षसह ने डूब क्षेत्र से बाहर करवा दी। बताया जा रहा है जो डूब क्षेत्र की जमीनें बाहर हुई है उनमें अधिकांश जमीन बड़े रसूखदारों की है। सामाजिक कार्यकर्ता तरुण शर्मा ने कहा कि यह बड़ा आश्चर्य जनक है जब छह जून २०१७ किसान आंदोलन उग्र था। पांच किसानों की गोली लगने से मौत हो गई थी। यह मसला पूरे देश भर में छाया हुआ था। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी जमीनों को डूब क्षेत्र से बाहर करने के आदेश कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह ने जारी किए।
१९९३ से जल संसाधन विभाग कर रहा आपत्ति : नियम के मुताबिक जल संसाधन विभाग के अधीन जलस्त्रोतों में डूब क्षेत्र की जमीन पर कोर्इ स्थाई निर्माण नहीं हो सकता। नपा ने मेघदूत नगर कॉलोनी का निर्माण किया वह भी डूब क्षेत्र में ही। सन्-१९९३ में जल संसाधन विभाग ने नपा को पत्र लिखकर मेघदूत नगर कॉलोनी विकसित करने पर आपत्ति दर्ज करवाई थी। सामाजिक कार्यकर्ता तरुण शर्मा के अनुसार वर्ष-२०११ में शहर की पानी की जरूरत बताते हुए नपा ने तैलिया तालाब जल संसाधन विभाग से ले लिया था। इसके बाद तो कई कॉलोनियां इस क्षेत्र में कट गई है। यह समझ से परे है कि २०११ तक डूब क्षेत्र में जमीनें आ रही थी। और पांच साल के भीतर ऐसा कितना अजूबा हो गयाकि सैंकड़ों बीघा जमीन डूब क्षेत्र के बाहर हो गई।
कलेक्टर न्यायालय ने फैसले में यह दिए तर्क : कलेक्टर न्यायालय के आदेश में लिखा गया कि विकास योजना २००१ के अनुसार तैलिया तालाब पर नगर तथा ग्राम निवेश द्वारा सड़क निर्माण प्रस्तावित था। यह डूब क्षेत्र से रहवासी क्षेत्र को अलग करती है। सड़क का नीचे का हिस्सा डूब क्षेत्र प्रस्तावित था व ऊपर का हिस्सा रहवासियों के लिए प्रस्तावित था। इसी कारण तैलिया तालाब के आसपास की जमीनों पर कई कॉलोनियां विकसित हो गई। २००४ से २००८ तक अधिकतम वॉटर लेवल की सीमाओं का संयुक्त वास्तविक सर्वे तत्कालीन कलेक्टरों ने करवाया था। जिसमें यशनगर, केशव कुंज व अन्य भूमियों को एमडब्लयू एल सीमा से बाहर मान्य किया व मास्टर प्लान के अनुसार रहवासी क्षेत्र घोषित किया है। उल्लेखनीय है कि कार्यालय जल संसाधन विभाग के पत्र क्रमांक ४८९/का/पी-४/०९ दिनांक ४ फरवरी २००९ के पत्र के अनुसार वर्ष २००९ तक जल संसाधन विभाग ने तैलिया तालाब के एमडब्लयूएल तथा एपीएल की भूमियों में से किसी सर्वे नंबर को बाहर करने के लिए कोई एनओसी विभाग ने जारी नहीं की थी। आदेश में लिखा गया कि विद्या पुखराज दशोरा ने तैलिया तालाब एमडब्लयूएल की सीमाकंन से संबंधित विसंगतियों को दूर करने के लिए आवेदन दिया था। इस आवेदन पर एक कमेटी गठित की गई। उस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ४ जून २०१६ से छह जून २०१६ तक सीमाकंन करवाकर पंचनामा प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इसी आधार पर नए सिरे से सीमाकंन कर कुछ सर्वे नंबरों को डूब क्षेत्र से बाहर किया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो