हर बार खरीफ के इस सीजन में सोयाबीन के एक पौधे पर25 से 30 फलिया आ जाती थी, किंतु इस वर्ष 5 से 10 ही फलिया इन पर लग रही है। सोयाबीन की फसल से किसानों ने कर्ज उतारने से लेकर कई अन्य कामों को लेकर उम्मीदें भले ही लगाई लेकिन बारिश ने खराब हो रही फसलों के साथ उम्मीदें भी धुलती जा रही है। बुआई से लेकर खरपतवार हटाने से लेकर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करने में कई लागत किसान लगा चुका है और अब लागत निकलना भी फसल की स्थिति देख असंभव लग रहा है। इससे किसान चिंतित है। खेतों में पानी होने के कारण सोयाबीन पीली पड़ गई है। और इल्लियों भी फसल को खराब कर रही है। किसानों की मानें तो जहां पहले औसत एक बीघा में चार से पांच बोरी सोयाबीन की पैदावार होती थी, वही अब ये उत्पादन मात्र एक बोरी या उससे भी कम तक सीमित हो जाएगा। कुछ दिनों के बाद खेत सुखे थे लेकिन गुरुवार की बारिश से फिर खेतों में पानी जमा हो गया।
फसल से थी कर्ज उतारने की उम्मीद
बारिश से इस फसल से जुड़ी हमारी सभी उम्मीदें तबाह हो गई। इस फसल से बाजार का कर्ज उतारने की उम्मीद थी।वो उम्मीद भी अब खत्म हो चुकी है। अब सरकार से आशा है कि वह नुकसानी का मुआयना कराकर उचित मुआवजा दे। – उमेश व्यास, कृषक नारायणगढ़
पैदावार की गुुंजाइश नाममात्र की रह गई
बारिश ने सोयाबीन उड़द मूंग सहित अन्य फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है। फसलों की देखभाल के लिए दवाईयों से लेकर अन्य लागत का खर्च तो लगा दिया लेकिन पैदावार की गुंजाइश अब नाममात्र की रह गई। -महेंद्र दिवाणीया, कृषक नारायणगढ़
फसल बचाने के लिए भी लेना पड़ रहा कज्र
किसान पूरी तरह फसलों पर ही निर्भर है। फसलों के भरोसे पर ही किसान कर्ज लेकर अपने काम करता है और इस उम्मीद से करता है कि फसल बेचकर कर्ज उतार देगा किंतु अभी की परिस्थिति में तो फसल को बचाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। -कमलेश कापडिय़ा, कृषक