कई मजदूर परिवार, सभी की एक ही कहानी
रोजगार और परिवार पालने की मजबुरी में ही अपना घर और परिवार छोड़ा। अब यहां गांवों में कोई एक कोना पकड़कर रह रहे है। यहां मजदूरी कर परिवार पाल रहे है। छोटे बच्चों को बड़े बच्चों के भरोसे छोड़कर या अपने साथ लेकर जाना भी मजबुरी है। आयुष्मान, संबल और बीपीएल जैसी सरकारी योजनाओं पर पूछा तो इनका जवाब था यह क्या होता है इन्हें नहीं पता। सरकारी योजना नहीं हमें तो बस यहीं पता है कि सुबह उठने के साथ मजदूरी की तलाश में जाना है। रबी सीजन और इससे जुड़ा खेती का काम चल रहा है तो यहां मजदुरी भी अच्छी मिल रही है। इसके अलावा निर्माण कार्यों के साथ अन्य काम के भरोसे पर ही उनका परिवार चलता है। ना तो इन्हें कोई श्रम कानून पता है और ना ही कोई सरकारी योजना, दिनभर काम कर इतना कमाना है कि शाम को चूल्हा जल जाए। इसी जुगत में दिनभर काम में जुटे रहना है।
आदिवासी क्षेत्र से बड़ी तादाद में रोजगार के लिए आए है श्रमिक
शहर सहित पूरे जिले में आदिवासी क्षेत्र पेटलावद, थांदला, झाबुआ, आलीराजपुर सहित कई अन्य जगह के श्रमिक परिवार के साथ रोजगार के लिए आते है और यहां पर मजदूरी कर परिवार का गुजर-बसेरा करते है। सड़को के किनारों पर रहकर रात गुजारने के साथ सुबह होते ही मजदूरी की तलाश में हर दिन निकल जाते है। हजारों की संख्या में शहर व जिले के नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिक अपने-अपने गांवों से रोजगार के लिए पलायन कर यहां पहुंचे है।
दस्तावेज जहां वहां मिलता है लाभ
श्रमिक परिवार मजदूरी के लिए आते है और अस्थायी रुप से यहां रहते है और मजदूरी के बाद निकल जाते है। गांवों में अधिकांश फसलेां के समय आते है। लेकिन आधार कार्ड सहित अन्य दस्तावेज जहां के होते है वहीं पर सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जा सकता है। -भगतराम चड़ावत, सचिव, ग्राम पंचायत कनघट्टी