मंदसौर

फीस नहीं भर पाई तो बेटे के हाथ से छीन लिया था पेपर, आज एयरफोर्स में पहुंचा

फीस नहीं भर पाई तो बेटे के हाथ से छीन लिया था पेपर, आज एयरफोर्स में पहुंचा

मंदसौरMay 12, 2019 / 12:14 pm

Nilesh Trivedi

फीस नहीं भर पाई तो बेटे के हाथ से छीन लिया था पेपर, आज एयरफोर्स में पहुंचा


मंदसौर.
बचपन में बेटे ने बातों से लेकर खेल में अपने इरादें जता दिए थे। लेकिन परिवार की मध्यम स्थित के कारण बेटे के सपनों को साकार करना ही मां के लिए सपने जैसा था। लेकिन हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष जारी रखा। बचपन में जब भी बातें करता आसमान में प्लेन उड़ाने और मां मैं प्लेन से आऊंगा तो आप देखना।और जब खेलने के लिए खिलोने भी मांगना तो प्लेन और हेलिकाप्टर ही मांगना। तभी से पता चल गया था। फिर थोड़ा बड़ा हुआ तो बार-बार पूछता वहां तक जाने के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा।
बेटे की ललक और जस्बे को देख उसे पूरा करने की ठानी और कभी परिचितों से तो कभी रिश्तेदारों से कर्ज तो कभी उधार की मदद लेते हुए संघर्ष जारी रखा और आज बेटे के सपने को मां ने अपने कठिन संघर्ष से पूरा कर दिया। और उसे एयर फोर्स तक पहुंचा था। आज बेटा एयरफोर्स में ट्रेनिंग पूरी कर हरियाणा में अंबाला में पदस्थ है। जी हां यह पूरी कहानी हैशहर में रहने वाली मालती गेहलोत की। जिनका बेटा यशोधर्मन गेहलोत एयरफोस में है।और वह आंगनवाड़ी कार्यकर्ता है और उनके पति की हेयर सेलून की दुकान है।

ऐसे पहुंचा बेटा एयरफोर्स
मालती बताती है कि पढ़ाई के दौरान जब यशोधर्मन बार-बार पूछता कि वहां कैसे जाऊंगा। क्या करना पड़ेगा तो पढ़ाई कर अच्छे अंक की बात कहती। लेकिन १० वीं और १२ वीं में अच्छे अंक लाने के बाद फिर जब कहा तो तलाश शुरु की। नेवी व एयरफोर्स के फॉर्म भरवाए। ४ माह उज्जैन में कोचिंग के लिए भेजा। पहली ही बार में उसका चयन भी होगा। नेवी में चयन हो गया था। उसी दौरान एयरफोर्स से भी कॉले लेटर आ गया। क्योंकि उसे एयरफोर्स में जाना था। इसलिए उसने एयरफोर्स को चुना।

जब फीस के कारण छीन लिया था पेपर
मालती बताती है कि वैसे तो पढ़ाई के दौरान हमेशा संघर्ष बना रहा। लेकिन १० वी के बाद जब स्कूल में प्रवेश दिलाना था तो प्रवेश नहीं हो रहा था। खुद विनती करी। बेटे के कॅरियर का वास्ता भी दिया। जिन मेडम से वह प्रवेश देने के लिए विनती कर रही थी और उन्होंने सीटें फूल हो जाने की बात कही, लेकिन अनेक बार विनती और अनुरोध के बाद प्रवेश मिल गया।वहां तीन-तीन माह में फीस भरना पड़ती थी। जब एक बार फीस नहीं जमा हो पाई तो यशोधर्मन की परीक्षा में फिजिक्स का पेपर छीन लिया था।
तब एक परिचत टीचर का फोन आया और वहां जाकर विनती की और अगले दिन व्यवस्था कर फीस जमा की थी।


परिवार की कमजोर थी स्थिति माध्यमिक तक नाना-मामा के यहां पढ़े
मालती गेहलोत बताती है कि परिवार की कमजोर स्थिति के कारण बेेटे और बेटी की माध्यमिक स्तर की पढ़ाई रतलाम में नाना-मामा के यहां पर हुई। इसके बाद मंदसौर आए। इसी बीच उनकी पढ़ाई के लिए अलग-अलग जगह जॉब की। यशोधर्मन की बड़ी बहन प्रियांक्षी गेहलोत है। वह भी पढऩे में होनहान है। एमएससी बायोटेक्नॉलोजी से 75 प्रतिशत अंक के साथ की है। तो मलेरिया पर रिसर्च भी किया है। बेटा भी पढऩे में शुरु से होनहार रहा। १० वीं में ८० तो १२ वीं में गणित संकाय में रहते हुए 85 प्रतिशत अंक लाया था। यशोधर्मन के पिता विजय गेहलोत की हेयर सेलून की दुकान है। इसमें भी बीच में कई उतार-चढ़ाव आए। लेकिन संघर्ष और हिम्मत नहीं छोड़ी और बेटे को मुकाम तक पहुंचाया। मालती और विजय ने मिलकर अपनी आवश्यकताओं को समेटा और जब तक बेटे ने अपना सपना पूरा नहीं कर लिया तब तक संघर्ष जारी रखा। आज जब वह एयरफोर्स में पदस्थ हैतो उस पर नाज भी है।

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