इसका ताजा उदाहरण गुरुवार को डायलिसिस यूनिट में डॉ अचल सिप्पा के निरीक्षण में सामने आया। एक मरीज के शरीर का पानी समय पर नहीं निकाला गया। डॉ सिप्पा द्वारा उसका उपचार किया गया। डॉक्टर सिप्पा के मुताबिक मेडिकल विशेषज्ञ का होना यूनिट के लिए जरूरी है। उन्होंने बताया कि वे हर तीन माह में एक बार निरीक्षण के लिए आते है। इस बीच मरीजों को उपचार भी करते हैऔर यूनिट की कमियों को भी देखते है।
यूं बनी प्रयोगशाला
डायलिसिस यूनिट की जिम्मेदारी मेडिकल विशेषज्ञ की होती है। मेडिकल विशेषज्ञ के नहीं होने से डॉक्टर निशंात शर्मा को ट्रेनिंग दी गई थी और उनको यूनिट की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन उनके स्थानातंरण होने के बाद उनको एक दिन छोडक़र एक दिन जिम्मेदारी यूनिट की दी गई। और मेडिकल विशेषज्ञ डॉडीके शर्मा के ज्वाइनिंग का पेंच वर्तमान में फंसा हुआ। ऐसे स्थिति में मेडिकल वार्डकी जिम्मेदारी शिशु रोग विशषज्ञों को दे रखी है। इन बचे हुए दिनों में शिशु रोग विशेषज्ञ यूनिट का संचालन करते है।
पांच मशीनें में से एक मशीन पड़ी खराब
डायलिसिस यूनिट में पांच मशीनें आईहै। इनमें से वर्तमान में एक मशीन खराब रखी हुईहै। जिससे भी डायलिसिस होने में परेशानी आ रही है। एक माह में करीब तीन सौ डायलिसिस होती है। यूनिट मेंं करीब ३० मरीज है।जिनकी डायलिसिस करीब तीन सौ होती है। डायलिसिस यूनिट के प्रभारी तो हैलेकिन फिर भी बिना प्रशिक्षण के डॉक्टरों को जिम्मेदारी देने से डॉक्टर को होना नहीं होना बराबर ही है।
इनका कहना
मेडिकल वार्ड के प्रभारी डायलिसिस यूनिट देख रहे है। और डॉक्टर निशांत शर्मा एक दिन छोडक़र एक दिन अपनी सेवाएं दे रहे है।
डॉ अधीर मिश्रा, सिविल सर्जन जिला अस्पताल।