सबसे पहले ब्रह्मलीन अनंत विभूषित स्वामी दिव्यानंद तीर्थ को श्रद्धांजलि दी गई। अध्यक्षता संत शिरोमणि काष्णी महाराज महामंडलेश्वर गुरुशरणा नंद, रमन रेती मथुरा द्वारा की गई। पूर्व पीठिका गीतिका मनीषी स्वामी ज्ञानानंद वृंदावन धाम द्वारा प्रस्तुत की गई। कार्यक्रम में स्वामी हरीशानंद, निर्मल पीठाधीश्वर, स्वामी ज्ञानदेव सिंह से महामंडलेश्वर स्वामी अविचल दास, महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव, महामंडलेश्वर विवेकानंद भगवतधाम, महाराज मंडलेश्वर शांति स्वरूप, महामंडलेश्वर हंसाराम, महंत उमेशनाथ, मंगलनाथ के साथ ही अन्य संत व भाजपा-कांग्रेस के नेताओं से लेकर पदाधिकारी भी यहां पहुंचे और आयोजन में भाग लिया।कई राज्यों से आयोजन में भाग लेने के लिए भक्तों की भीड़ यहां पहुची।
दोपहर करीब 2.30 बजे ब्रह्मलीन स्वामी दिव्यानंद तीर्थ द्वारा घोषित उत्तराधिकारी एवं मनोनीत शंकराचार्य स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ का महापट्टाभिषेक शुरु हुआ। इसमें अयोध्या का पानीपत के आचार्यों ने मंगलाचरण प्रस्तुत कर पट्टाभिषेक की प्रक्रिया शुरु की।प्रथम शाल चादर व संदेश निवर्तमान शंकराचार्य भानपुरा पीठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी की और ब्रह्मचारी किशोरानंद द्वारा भेंट की गई। दूसरी चादर पूर्व शंकराचार्य स्वामी रामाश्रम जी की ओर से भेंट की गई।
नवीन शक्तिपीठ के रुप में शारदा विग्रह स्थापित किया
आदि शंकराचार्य के विग्रह के साथ त्रोटकाचार्य, सुरेश्वराचार्य के विग्रह के साथ शारदा विग्रह स्थापित कर भानपुरा पीठ को एक नवीन शक्तिपीठ के रूप में स्थापित किया। नवीन शंकराचार्य स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ में भानपुरा को विश्व पटल पर स्थान दिलवाने का संकल्प लिया। समापन पर जगतगुरु सेवा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने आभार माना। संचालन पूरावेत्ता डॉ प्रद्युमन भट्ट ने किया।