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कांग्रेस नहीं कर पा रही निर्णय, बहुमत के बाद भी भाजपा भी मौन, खामियाजा भुगत रहा मंदसौर

locationमंदसौरPublished: Jun 28, 2019 11:54:25 am

Submitted by:

Nilesh Trivedi

कांग्रेस नहीं कर पा रही निर्णय, बहुमत के बाद भी भाजपा भी मौन, खामियाजा भुगत रहा मंदसौर

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कांग्रेस नहीं कर पा रही निर्णय, बहुमत के बाद भी भाजपा भी मौन, खामियाजा भुगत रहा मंदसौर


मंदसौर.
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के चलते कांग्रेस को नपा में पिछले ३५ से ४० बाद अपना अध्यक्ष बिठाना का मौका है, लेकिन गुटीय राजनीति कांग्रेस में इस कदर हावी है कि नपाध्यक्ष की रिक्त पड़ी कुर्सी पर कार्यकारी अध्यक्ष का निर्णय ६ माह बाद भी नहीं हो पाया। इधर नपा में बहुमत होने के बाद भी भाजपा ने न तो इसके लिए पहल की और ठप हो चुके विकास के बाद भी आमजनता को लेकर भाजपा ने भी किसी स्तर पर पहल की। प्रभारी मंत्री के दौरे से पार्षदों के साथ शहर को भी आस थी कि कोई भी बनें, लेकिन बनें। तो शहर का विकास आगे बढ़े। लेकिन प्रभारी मंत्री ने सीधा रास्ता दिखाया एक बार फिर से निराशा ही हाथ लगी। वहीं उपचुनाव को लेकर भी अभी स्थिति स्पष्ट नहीं।

भाजपा को बहुमत, लेकिन न पहल की और न विरोध
शहर के ४० वार्ड है और इनमें बहुमत भाजपा को है। बावजूद पिछले ६ माह से खाली पड़ी अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर भाजपा ने अपनी और से न तो पहल की और न हीं विरोध में सडक़ों पर उतरे। दरअसल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने से हर किसी को उम्मीद है कि अध्यक्ष कांग्रेस पार्षदों में से कोई बनेगा। लेकिन कांग्रेस के निर्णय नहीं कर पाने के कारण प्रभावित हो रहे विकास कार्यों से लेकर शासकीय योजनाओं व हितग्राही मूलक कामों के साथ अन्य कामों के कारण भले ही आम लोग परेशान हो रहे, लेकिन भाजपा ने इस मुद्दें पर अब तक कांग्रेस का विरोध भी नहीं किया और न हीं शासन-प्रशासन से इस मामले का जनता के हित में निर्णय करने के लिए किसी स्तर पर पहल की।

प्रशासक के रुप में वित्तीय अधिकार सौंपे, पर नहीं मिला लाभ
शासन ने वित्तीय अधिकार सौंपे प्रशासक बैठाया, लेकिन इसका नपा से लेकर शहर को कोई लाभ नहीं मिला। यहां नामांतरण से लेकर तमाम काम रुके पड़े है। लेकिन कोई नया काम नहीं हो रहा है। नपा में परिषद के सम्मेलन से लेकर पीआईसी की बैठकों में नए कामों की मंजूरी और नीतिगत निर्णय होते है। ऐसे में इसका लाभ भी शहर को नहीं मिला।

्रउपचुनाव की भी नहीं स्थिति स्पष्ट
नियमानुसार तो कुर्सी खाली होने के ६ माह बाद उपचुनाव होना चाहिए। ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद से ही नपाध्यक्ष उपचुनाव की सरगर्मिया तेज हुई। और सोशल मीडिया से लेकर चौराहों पर दावेदार भी घरों से बाहर निकल आए, लेकिन कुछ दिन के बाद फिर मामला ठंडा हो गया। उपचुनाव की संभावनाएं जताई जा रही थी, लेकिन अब तक उपचुनाव को लेकर स्थिति ही स्पष्ट नहीं है।

सबकुछ फायनल पर आदेश जारी नहीं हो रहा
इधर कांग्रेस पार्षदों की माने तो अध्यक्ष को लेकर सबकुछ तय है। फाईल भी तैयार है, लेकिन कतिपय कारणों के चलते आदेश जारी नहीं हो रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले भी कवायद तेज हुई थी, इसके बाद पिछले दिनों भी हुई। लेकिन मामला भोपाल से अटका हुआ है। वहां पर चल रही जोरआजमाईश के कारण इस पर निर्णय नहीं हो पा रहा। इसका खामियाजा पिछले ६ माह से शहर की जनता नपा से जुड़े तमाम काम ठप होने के कारण भुगत रही है।

प्रभारी मंत्री से मिले तो दिखाया सीधा रास्ता
कांग्रेस पार्षद अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर मुख्यमंत्री से लेकर विभागीय मंत्री से कई बार भोपाल में जाकर मिल चुके है। प्रभारी मंत्री हुकुमङ्क्षसह कराड़ा का मंदसौर में दौरा था तो पार्षदों को उम्मीद थी कि अध्यक्ष के आदेश का लिफाफा प्रभारी मंत्री लेकर आएंगे और घोषणा करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पार्षदों ने इस मसले पर मिलकर बात करनी भी चाही तो उन्होंने सीधा रास्ता दिखा दिया और कहा कि यह मेरा मामला नहीं। आब विभागीय मंत्री जयवद्र्वनसिंह से मिलें।

कलेक्टर से मिलेंगे
कांग्रेस से नहीं हो पाएगा। इस मामले में हम एक-दो दिन बाद कलेक्टर से मिलेंगे और चर्चा करेंगे। इसके बाद आगे की रणनीति पर काम करेंगे। अध्यक्ष पर निर्णय नहीं होने के कारण विकास थम गया है। -राजेंद्र सुराणा, जिलाध्यक्ष, भाजपा

जल्द अवरोध होगा समाप्त
अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर राजनीतिक व प्रशासनिक सभी प्रक्रिया चली है। बीच में लोकसभा चुनाव से लेकर अन्य कारण भी आए थे। लेकिन इस मामले में अब जल्द निर्णय के बाद अवरोध दूर होंगे। -प्रकाश रातडिय़ा, जिलाध्यक्ष, कांग्रेस

कांग्रेस की गुटीय राजनीति में ठप किया विकास
कांग्रेस गुटीय राजनीति के कारण अध्यक्ष तय नहीं कर पाई और अभी भी खींचतान में लगी है। हमने लेटर दिया था तो तत्कालीन सीएमओ ने राज्य शासन से मार्गदर्शन मांगने का उस पर लिख दिया था। लेकिन इन ६ माह में पूरे शहर का विकास ठप हो गया है। इसके लिए कांग्रेस जिम्मेंदार है। प्रशासक को वित्तीय अधिकार देकर बिठाया तो भी शहर को इसका लाभ नहीं मिला। -यशपालसिंह
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