अफीम व उसके उत्पादक की बढ़ती तस्करी और लोगों में बढ़ती नशे की लत के चलते १९८५ में एनडीपीएस एक्ट बनाया गया था। इसमें १० साल की सजा और एक लाख रूपए का जुर्माना जैसे कई प्रावधान किए गए। एक्ट के तहत यह कहा गया कि अफीम में ०.२ से अधिक मार्फिन की मात्रा होने पर ही अफीम तस्करी करने वालों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया जाए। इस एक्ट में प्रावधान किया गया था कि डोडाचूरा तस्करी करने वालों के खिलाफ एक्ट के तहत वही कार्रवाई की जाए जो कि अफीम तस्करी करने वालों के खिलाफ की जाती है। विश्व में बढ़ती नशे की लत के चलते अफीम उत्पादक देशों को यूएनओ ने अपने देशों में अफीम तस्करी को लेकर कठोर बनाने की बात कही थी। इस कानून के बनने के बाद हजारों लोगों पर एक्ट के तहत कार्रवाई की जा चुकी है। इसमें डोडाचूरी तस्करी करने वाले लोग भी शामिल है।
कानून में बदलाव का यह है तर्क
जानकारों का कहना है कि विदेशों में खासतौर पर आस्ट्रेलिया, स्पेन, तुर्क सहित १४ देशोंं में अफीम ढोढों में चीरा लगाए बगैर सीधे फसल से ढोढों को मशीनों से काट अफीम निकाला जाता है। इस कारण वहां तस्करी बहुत कम होती है। भारत में अफीम निकालने की विधि परमपरागत है। यहां अफीम उत्पादक किसान कच्चे ढोढों में से पांच से छह बार चीरा लगाकर अफीम निकालते है। छह बार अफीम लुनाई के बाद डोडाचूरा में अफीम की मात्रा नहीं के बराबर रहती है। इसमें भी मार्फिन ०.२ से कम रहती है। इसके बाद भी डोडाचूरा तस्करी करने पर तस्करों को उतनी ही सजा मिलती है जितनी की अफीम तस्करों को। एक्ट में कहीं भी प्रावधान नहीं है कि डोडाचूरा में कितनी मात्रा से अधिक मार्फिन हो तब अपराध कायम हो। डोडाचूरा तो केवल वजन के आधार पर ही पकड़ा जाता है उसी आधार पर सजा भी होती है। अब चूंकि डोडाचूरा नष्टीकरण होने लगा है और डोडाचूरा में एक्ट के मानक के मुताबिक मार्फिन भी नहीं होती है लिहाजा डोडाचूरी को एनडीपीएस एक्ट से बाहर करना चाहिए। इससे कई युवाओं का भविष्य नहीं बिगड़ेगा और अपराध भी कम होंगे। पुलिस पर काम का दबाव भी कम होगा।