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इस ख्यात मंदिर में क्यों मनाया जाता है स्वतंत्रता दिवस, होता है आजादी का अभिषेक

locationमंदसौरPublished: Aug 11, 2018 02:25:18 pm

Submitted by:

harinath dwivedi

इस ख्यात मंदिर में क्यों मनाया जाता है स्वतंत्रता दिवस, होता है आजादी का अभिषेक
 

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इस ख्यात मंदिर में क्यों मनाया जाता है स्वतंत्रता दिवस, होता है आजादी का अभिषेक

मंदसौर.
दुर्वा को भगवान गणेश का प्रिय माना जाता है। सावन में शुक्रवार को चतुर्दशी पर अष्टमुखी बाबा पशुपतिनाथ का जयकारों के साथ दुर्वा से अभिषेक हुआ। खेत और नदी किनारों के साफ और पवित्र भूमि की दुर्वा को एकत्र कर सुबह पशुपतिनाथ मंदिर लाया गया। आस्था से बाबा का दुर्वा शृंगार कर पूजन किया गया। पूजन के बाद मंदिर गर्भगृह में भारतमाता की जय के नारे लगाए गए और मुंह मीठा कराकर आजादी की खुशियां मनाई गई। उल्लेखनीय है कि विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में १९४७ के मुहूर्त के हिसाब से हर साल आजादी का अभिषेक किया जाता है। तिथि अनुसार इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस १० अगस्त को थी। पंडित उमेश जोशी ने बताया कि ज्योतिष कर्मकांड परिषद के अनुसार १९४७ की रात १२ बजे भारत आजाद होने के कारण देश की कुंडली में कालसर्प योग है। इसमें राहु, केतु व शनि का वास होने के कारण सभी क्षेत्रों में संपन्न होने के बाद भी देश में भूख, भय की स्थिति बनी रहती है। ऐसे में ३१ साल से तिथि अनुसार मंदिर में स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है। भोलेनाथ का दुर्वा व जल से अभिषेक करने से ऐसी सामूहिक विपदा से छुटकारा मिलता है।


आयु और संपन्नता में भी होती है वृद्धि
सावन में भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्त जल और बेल-पत्र से अभिषेक करते हैं। शिवपुराण की रुद्रसंहिता के अनुसार ऐसा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। भगवान शिव को दुर्वा अभिषेक करने से आयु और संपन्नता में वृद्धि होती है। भगवान पशुपतिनाथ का दुर्वा अभिषेक करने के बाद सुबह 8.30 से 9 बजे के बीच विशेष पूजन हुआ। यह पंडित उमेश जोशी ने कराया। ५ पंडितो ने कुंडली दोष निवारण के मंत्रों के साथ भगवान का अभिषेक किया। दुर्वाभिषेक में पंडितो द्वारा रुद्रपाठ कर देश पर आने वाली विपदाओं को टालने की प्रार्थना की गई। देश की स्वतंत्रता दिवस को तिथि के अनुसार मनाते हुए श्रावण कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर भगवान पशुपतिनाथ का दुर्वा अभिषेक किया जाता है। जानकारी अनुसार शुक्रवार को हुए अभिषेक के बाद यह दुर्वा मनोकामना अभिषेक में बैठे श्रद्धालुओं को दी गई। इससे मनोकामना अभिषेक करने वाले श्रद्धालुओं ने जल के लौटे से भगवान की रजत प्रतिमाओं का जलाभिषेक किया।
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