मानव अपनी युवावस्था को धर्म आराधना, तप तपस्या में लगाएं
मनुष्य जीवन को बाल्यावस्था, युवावस्था व वृद्धावस्था तीन भागो में बताया गया। बाल्यवास्था में समझ नहीं होने के कारण के कारण धर्म आराधना करना कठिन होता है। यह बात अपूर्वप्रज्ञाजी मसा ने शास्त्री कॉलोनी स्थित जैन दिवाकर स्वाघ्याय भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जन्म से लेकर 3 वर्ष तक बच्चे पैरो के साथ साथ हाथों से भी चलते है इसी कारण शिशु अवस्था में धर्म साधना नहीं उसी प्रकार वृद्धावस्था में शरीर इतना कमजोर हो जाता है कि मनुष्य सही तरीके से नही चल पाता है और उसे सहारे या लकड़ी की सहायता की जरूरत होती है। इसी कारण ज्ञानीजन कहते है बाल्यवस्था में मनुष्य चार टांग पर, वृद्धावस्था में तीन टांग पर चलता है धर्म आराधना, तप, तपस्याा के लिये शरीर का साथ होना आवश्यक है और बाल्वस्था व वृद्धावस्था में शरीर का साथ मिलना मुश्किल है। इसलिए जो भी धर्म आराधना तप तपस्या करना है तो युवावस्था में ही कर ले। नही तो वृद्धावस्था में पछताना ही पड़ेगा। उन्होंने पयूर्षण पर्व के दूसरे दिवस धर्मसभा में कहा कि जो भी धर्म आराधना करना है उसके लिये युवास्था ही उत्तम है युवास्था मे शरीर तो पुष्ठ होता है साथ ही व्यक्ति की इच्छाशक्ति भी दृढ होती है। धर्म आराधना के मार्ग पर चलकर परमात्मा की कृपा पायी जा सकती है। 9 सितम्बर को दोपहर 2 बजे भगवान महावीर का जन्मवाचन महोत्सव मनाया जाएगा।