मृत्यु तिथि एवं महालय में पूर्वजों का तर्पण से शांति
पंडित सोमेश्वर जोशी ने बताया कि तीनो ऋणों में माता- पिता द्वारा हमारी आयु, आरोग्य, सुख समृद्धि और विद्या के लिए किए गए उनके इन ऋणों से मुक्ति न होने पर हमारा जन्म निरर्थक हो जाता है और कई तरह के श्राप से मुक्त होने के लिए भद्र शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या महालय पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। मृत्यु तिथि एवं महालय में पूर्वजों का तर्पण सर्वसुलभ तिल, जल, यव, कुश, पुष्प, गोग्रास, एक, तीन, पांच मृतक के प्रिय कवर साहब, भांजे, ब्राह्मण को भोजन करने पर उनकी आत्मा को यह प्राप्त होता है और शांति मिलती है। स्कन्द पुराण का कथन है कि ‘श्राद्ध’ नाम इसलिए पड़ा है कि उस कृत्य में श्रद्धा मूल स्रोत है। इसका तात्पर्य यह है कि इसमें न केवल विश्वास है, प्रत्युत एक अटल धारणा है कि व्यक्ति को यह करना ही है। ऋग्वेद में श्रद्धा को देवत्व दिया गया है और वह देवता के समान ही संबोधित हैं।
24 सितंबर से 8 अक्टूबर तक श्राद्ध तिथियां
24 सितंबर सोमवार, पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर मंगलवार, प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर बुधवार, द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर गुरुवार, तृतीय श्राद्ध
28 सितंबर शुक्रवार, चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर शनिवार, पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर रविवार, षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर सोमवार, सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर मंगलवार, अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर बुधवार, नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर गुरुवार, दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर शुक्रवार, एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर शनिवार, द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर रविवार, त्रयोदशी व चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर सोमवार, सर्वपितृ अमावस्या
ये है श्राद्ध के महत्वपूर्ण नियम
– तर्पण पहले साढ़े तीन प्रहर से पहले करें।
– मध्यान्ह काल में ही श्राद्ध करे।
– गौ, कौए, श्वान और भिक्षुक को अवश्य भोजन करवाएं।
– श्राद्ध में केवल सफेद भोज्य पदार्थों तथा मृतक की प्रिय भोजन अवश्य बनाएं।
– सम्पूर्ण परिवार भोजन करवाने के बाद ही भोजन करें।
– श्राद्ध में भोजन के लिए ब्राह्मण, प्रिय व्यक्ति दामाद, भांजा, भतीजा श्रेष्ठ होते है।