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भावांतर से लेकर अन्य योजनाओं में खूब बांटा, दूसरे विभागों के बजट में की कटौती

locationमंदसौरPublished: Oct 10, 2018 06:20:33 pm

Submitted by:

harinath dwivedi

भावांतर से लेकर अन्य योजनाओं में खूब बांटा, दूसरे विभागों के बजट में की कटौती

patrika

भावांतर से लेकर अन्य योजनाओं में खूब बांटा, दूसरे विभागों के बजट में की कटौती

मंदसौर । चुनावी साल में की गईनीति-नई घोषणाओं को पूरा करने के लिए सरकार ने अन्य विभागों में संचालित योजनाओं के बजट में बड़ी कटौती की है। इस कारण योजनाओं के लक्ष्य में कटौती की गई।ऐसे में सरकार की नीतियों से ही सरकार की योजनाओं का पलीता लग रहा है और कई किसान दफ्तरों में इसका लाभ लेने के लिए चक्कर काट रहे है। भावांतर से लेकर समर्थन पर खरीदी हो या कृषक समृद्धि योजना हो, करोड़ों रुपए किसानों को बांटे गए, इसका आलम यह हुआ की सरकार ने इसकी पूर्तिकरने के लिए दूसरे विभागों की योजनाओं के बजट में कटौती करते हुए उनके लक्ष्य भी कम कर दिए। इस कारण इन योजनाओं से जुड़े प्रकरण स्वीकृति के बजाए दफ्तरों में अटके पड़े है। पत्रिका ने पशुपालक विभाग के अंतर्गत संचालित आचार्य विद्यासागर योजना को स्कैन किया तो यह हालात सामने आई। प्रदेश में हर साल इस योजना के लिए आवंटित बजट में इस बार कटौती की गई, इसके कारण लक्ष्य आधे से भी कम कर दिए। इसी के कारण कई हितग्राही इस येाजना के लाभ से वंचित रह गए। विभाग ने आवेदन लेकर तो रख लिए, लेकिन बजट की कमी के कारण लाभ नहीं दिया।
योजना में बजट ऐसे बना रोड़ा
योजना के लागू होने पर अंचल में प्रचार के बाद किसानों ने इसमें रुचि दिखाना शुरु की। २०१६ में जिले में मात्र ३३ प्रकरण इसके थे, लेकिन २०१७ में २५० प्रकरण इस योजना में बने और किसानों ने इसका लाभ लिया। अब जब इस बार और ज्यादा किसानों को इसमें लाभ लेने का इंतजार था तो सरकार ने विभाग को इस योजना के लिए आवंटित बजट में ही कटौती कर दी और प्रदेश के सभी जिलों के लक्ष्य कम कर दिए। जिले को २०१८ में इसके लिए मात्र ५३ का लक्ष्य मिला। यह तो पूरा आसानी से हो गया, लेकिन ८७ प्रकरण ऐसे है जो स्वीकृति के लिए बैंक में इंतजार कर रहे है। बजट के अभाव में यह स्वीकृत नहीं हो पाए है। साथ ही जिले भर में लगे विभिन्न जगहों पर मेलों में इस योजना के लिए किसानों ने बड़ी संख्या में आवेदन किए और ६७५ आवेदन आए।लेकिन बजट व लक्ष्य दोनों की कटौती के कारण इन्हें लाभ से वंचित होना पड़ा। पिछले महीनों में योजनाओं का प्रचार कर मेलों में आवेदन तो खूब भरवाए, लेकिन उन्हें बजट के अभाव के कारण अब तक लाभ नहंी दिया जा सका।
यह हैपूरी योजना
पशुपालन को बढ़ावा देने, डेयरी फॉर्म के माध्यम से रोजगार के अवसर तैयार करने के साथ किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए प्रदेश सरकार ने आचार्य विद्यासागर गो-संवर्धन योजना लागू की थी। सभी वर्गों के किसानों के लिए यह योजना थी। इसमें पशुपालन के लिए किसान के पास कम से कम १ एकड़ जमीन जरुरी होने के साथ मान्यता प्राप्त चिंहित स्थान से पशुओं को खरीदे जाने की शर्त पर किसान को इसका लाभ देने सुनिश्चित किया था। पशुओं की खरीदी के साथ उन्हें रखने के लिए शेड के साथ अन्य इंतजाम भी इसमें शामिल है। इसमें ३३ प्रतिशत एसटी,एटी वर्ग व २५ प्रतिशत सामान्य वर्ग के हितग्राही के लिए अनुदान दिया जाता है। भैंस व गाय के लिए अलग-अलग लागत के आधार पर सब्सिडी व अंशदान इसमें शामिल है।साथ ही लागत पर अंशदान के लिए अलावा योजना में मिलने वाले ऋण का ५ प्रतिशत ब्याज सात सालों तक सरकार द्वारा वहन किया जाता है। शेष हितग्राही को वहन करना होता है।
फेक्ट फाईल
जिले का लक्ष्य
वर्ष २०१६ में लक्ष्य ३३
वर्ष२०१७ में लक्ष्य २५०
वर्ष २०१८ में लक्ष्य ५३
८७ प्रकरणों को स्वीकृति को अब भी इंतजार
विभिन्न जगहों पर लगे मेलों में आए थे ६७५ आवेदन
बजट के कारण रुके मामले
इस बार पूरे प्रदेश में इस योजना के लिए बजट में कटौती हुई। इसी कारण हर साल आने वाले लक्ष्य को भी कम किया गया है। जिले में भी बजट की कमी के कारण लक्ष्य कम किया और जो प्रकरण अटके है, वह बजट की कमी के कारण अटके है। शासन को मांग व रुके प्रकरणों की जानकारी भेजी जा चुकी है।-डॉ. मनीष इंगोले, उपसंचालक, पशुपालन विभाग
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भावांतर में पंजीयन कराने के बाद भी मंडी में बेचना पड़ी सोयाबीन
-खरीदी नहीं हुई शुरु, पैसों की थी जरुरत, मजबूरी में बेचना पड़ी सोयाबीन
बाजखेड़ी/मंदसौर.
सरकार ने सोयाबीन से लेकर अन्य फसलों के लिए भावांतर भुगतान योजना में पंजीयन तो कराया, लेकिन खरीदी अभी शुरु नहीं हुई। इधर फसल आना शुरु हो गई। किसानों को पैसों की जरुरत होने के कारण भावांतर में पंजीयन कराने के बाद भी उन्हें मंडी में कम राशि में सोयाबीन मजबूरी में बेचना पड़ रही है। सरकार ने पंजीयन कराने के बाद भले ही बोनस देने की घोषणा भी पूर्व में कही हो, लेकिन अब तक खरीदी शुरु नहीं होने के कारण किसानों को कम दामों में मंडी में ही सोयाबीन बेचना पड़ रही है। किसानों को इससे दोहरी मार झेलना पड़ रही है। पिछले दिनों बारिश के कारण सोयाबीन में हुए नुकसान के बाद अब उन्हें तय दाम व बोनस छोड़ कम दामों में ही मंडियों में उपज बेचना पड़ी रही है।
मजबूर किसान मंडी में सोयाबीन बेच रहा
इन दिनों सोयाबीन की फसल आने का दौर शुरु हो गया है। सोयाबीन के पंजीयन तो हो गए लेकिन अभी तक किसानों का माल की खरीदी इसमें शुरु नहीं हुई। किसान पहले से ही परेशान है अब अगर सोयाबीन के भावांतर में खरीदी की राह देखे तो उन्हें आर्थिक कठिनाईयों के दौर से गुजरना पड़ रहा है।इसीलिए सोयाबीन की फसल जरुरतों को पूरा करने के लिए मंडी में बेचना पड़ रही है। समस्या यह है कि किसान के पास पैसा नहीं है इधर किसानों को मजदूरी के पैसे देना पड़ते हैं तो क्या करें मजबूरी में किसान सोयाबीन को मंडी में बेचना ही पड़ रही है। इधर ग्रामीणों में किसानों का कहना है कि सोयाबीन की फसल में कुछ तो पहले से लगे रोगों ने मार दिया कुछ बारिश ने और अब भाव ने मार दिया। किसानों का कहना है कि 1 बीघा की सोयाबीन में कटाई से लेकर मशीन में निकालने के 2000 से 2500 रुपए का खर्च आता है।

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