script45  जैन आगमों में उत्तराध्यन सूत्र का विशिष्ठ महत्व | Patrika News | Patrika News

45  जैन आगमों में उत्तराध्यन सूत्र का विशिष्ठ महत्व

locationमंदसौरPublished: Nov 03, 2018 08:15:00 pm

Submitted by:

harinath dwivedi

45 जैन आगमों में उत्तराध्यन सूत्र का विशिष्ठ महत्व

patrika

45  जैन आगमों में उत्तराध्यन सूत्र का विशिष्ठ महत्व

मंदसौर । शहर के चौधरी कॉलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में उत्तराध्यन सूत्र का वाचन शनिवार से प्रारंभ हुआ। साध्वी मुक्तिप्रिया मसा आदि ठाणा-7 के मुखारविन्द से 7 नवम्बर दीपावली तक यहां प्रतिदिन प्रात 7.30 बजे से 8 .30 बजे तक उत्तराध्यन सूत्र का वाचन होने जा रहा है। धर्मसभा में साध्वी मृदुप्रिया मसा ने कहा कि सभी 45 जैन आगमों में उत्तराध्यन सूत्र का विशिष्ठ महत्व है। इस शास्त्र में प्रभु महावीर की अंतिम देशना समाहित है। शास्त्र में 36 अध्याय है। इस शास्त्र में जैन धर्म देव गुरू परमात्मा की महिमा बताईगईहै। जब भी मनुष्य को साधु संतो के सानिध्य का अवसर मिले उसे इस शास्त्र का जरूर लाभ लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी भवों में मनुष्य भव दुर्लभ है। मनुष्य भव में भी आर्य देश भारत भुमि पर जन्म व अच्छे संस्कारी परिवार में जन्म मिलना दुलर्भ है।आप बहुत भाग्यशाली है कि आपको दोनो का सयोग मिला है। इस शास्त्र के माध्यम से प्रभु महावीर ने प्रमाद छोडने की प्रेरणा दी है। हम थोड़ा सा दान पुण्य करते है तो प्रमाद करने लगते है थोड़ा सा धर्म करने पर अपने को बहुत धार्मिक मानने लगते है। हमें इस प्रकार के प्रमाद से बचना चाहिए। यदि हम इस प्रकार के प्रमाद से बचे रहेंगे तो मनुष्य भव की सार्थक प्राप्त कर लेगा लेकिन यदि धर्म में प्रमाद कर लिया तो मोक्ष की बजाए नरक गति में जगह मिलेगी। धर्मसभा के बाद लक्ष्मीलाल संदीप कुमार धींग जैन परिवार की ओर से श्रीफल की प्रभावना वितरित की गई। इसी लाभार्थी परिवार द्वारा ५ लक्की ड्रा निकालकर उन्हें चांदी के सिक्के वितरित किए गए।

‘तपस्वियों की अनुमोदना करता है जैन धर्म’
मंदसौर । जैन धर्म संसार का एक विशिष्ट धर्म है जो तप त्याग करने वाले को विशिष्ट मानता है और उनके तप त्याग की अनुमोदना करता है। जो भी व्यक्ति तप तपस्या करता है या कोई भी पदार्थ धन सम्पत्ति करता है वह अनुमोदना प्रशंसा के योग्य है। सच्चा सुख भोग विलास में नहीं त्याग में है। संसार की इच्छाओं अनंत है इच्छाओं को नियंत्रित करना और इच्छाओं का त्याग करने वाला ही सच्चा त्यागी है। इसलिए जीवन में भोग की प्रवृत्ति छोडो व तप त्याग की प्रवृत्ति लाओं क्योंकि त्याग में ही सच्चा सुख है। यह बात जैन संत प्रसन्नचंद्र सागर मसाने शनिवार को आयोजित धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि जैन धर्म उत्कृष्ट साधु साध्वी की भांति 12 व्रतधारी श्रावक- श्राविकाओं की भी प्रशंसा करने वाला धर्म है। भगवान महावीर के समय 12 वृतधारी श्रावक थे। इनकी प्रशंसा स्वयं महावीर ने की है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में उत्कृष्ट साधु साध्वी के 5 महावृत बताए गएहै जबकि उत्कृष्ट श्रावक श्राविकाओं 12 वृतियों को धारण करने वाला व्यक्ति ही सच्चा श्रावक है। ऐसे श्रावक श्राविका की मनुष्य लोक में ही नही स्वर्ग लोभ में भी अनुमोदना होती है। उन्होंने कहा कि 12 वृतधारी श्रावक श्राविका बनने के लिये जीवन को नियमों में ढालना होगा। योग गुरू से वृत पंचकांण लेने होंगे। गुरूवंदन व चेत्यवंदन जैसी क्रियाओं सिखनी होगी तभी 12 वृत धारी श्रावक- श्राविका बन पाओंगे।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो