‘तपस्वियों की अनुमोदना करता है जैन धर्म’
मंदसौर । जैन धर्म संसार का एक विशिष्ट धर्म है जो तप त्याग करने वाले को विशिष्ट मानता है और उनके तप त्याग की अनुमोदना करता है। जो भी व्यक्ति तप तपस्या करता है या कोई भी पदार्थ धन सम्पत्ति करता है वह अनुमोदना प्रशंसा के योग्य है। सच्चा सुख भोग विलास में नहीं त्याग में है। संसार की इच्छाओं अनंत है इच्छाओं को नियंत्रित करना और इच्छाओं का त्याग करने वाला ही सच्चा त्यागी है। इसलिए जीवन में भोग की प्रवृत्ति छोडो व तप त्याग की प्रवृत्ति लाओं क्योंकि त्याग में ही सच्चा सुख है। यह बात जैन संत प्रसन्नचंद्र सागर मसाने शनिवार को आयोजित धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि जैन धर्म उत्कृष्ट साधु साध्वी की भांति 12 व्रतधारी श्रावक- श्राविकाओं की भी प्रशंसा करने वाला धर्म है। भगवान महावीर के समय 12 वृतधारी श्रावक थे। इनकी प्रशंसा स्वयं महावीर ने की है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में उत्कृष्ट साधु साध्वी के 5 महावृत बताए गएहै जबकि उत्कृष्ट श्रावक श्राविकाओं 12 वृतियों को धारण करने वाला व्यक्ति ही सच्चा श्रावक है। ऐसे श्रावक श्राविका की मनुष्य लोक में ही नही स्वर्ग लोभ में भी अनुमोदना होती है। उन्होंने कहा कि 12 वृतधारी श्रावक श्राविका बनने के लिये जीवन को नियमों में ढालना होगा। योग गुरू से वृत पंचकांण लेने होंगे। गुरूवंदन व चेत्यवंदन जैसी क्रियाओं सिखनी होगी तभी 12 वृत धारी श्रावक- श्राविका बन पाओंगे।