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मंदसौर

हमारी संस्कृति में नहीं है अस्पृश्यता जैसा कोई शब्द

हमारी संस्कृति में नहीं है अस्पृश्यता जैसा कोई शब्द

मंदसौरNov 18, 2018 / 07:40 pm

harinath dwivedi

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हमारी संस्कृति में नहीं है अस्पृश्यता जैसा कोई शब्द

मंदसौर । हमारे देश की सांस्कृतिक परम्परा पूरे विश्व को एक परिवार मानने की है इसीलिए दुनिया में सबसे श्रेष्ठ सामाजिक व्यवस्था भारत की है। समाज है तो राष्ट्र है, भारतीय समाज समरसता के भाव लिए ही है। यह बात चिंतक व राष्ट्रवादी विचारक ब्रजकिशोर भार्गव ने कहीं। वे शहर के माहेश्वरी धर्मशाला में सामाजिक समरसता मंच के दीपावली मिलन समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारे अवतारी पुरूषों ने हमें समभाव व समदृष्टि का संदेश दिया है, भगवान श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाकर मानवता को समभाव का संदेश दिया, हमारी संस्कृति में अस्पृश्यता जैसा कोई शब्द नहीं है।
पुन:प्राप्त करना हैविश्वगुरु का गौरव
मुख्यवक्ता भार्गव ने कहा कि सामाजिक सररसता का सृजन करते हुए हम ऊंच नीच के भेद को मिटाकर भारत को सशक्त राष्ट्र बनाने का संकल्प लें। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति सनातन है जो हमे प्रेम, सहयोग सद्भाव सिखाती है। इसलिए तो एक समय ऐसा था जब भारत सोने की चिडिय़ा कहा गया था। हमारे देश की सामाजिक एकता से भी इसे विश्वगुरू बनाना था, हमें फिर से यह यह गौरव प्राप्त करना है। अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी ओमप्रकाश पोरवाल ने की। आयोजन समिति के संयोजक सूरजमल गर्ग भी उपस्थित थे। सामाजिक समरसता समिति के सचिव प्रदीप भाटी ने समारोह की प्रस्तावना रखी, हरिओम शर्मा व उनके दल ने आरंभ में गीत प्रस्तुत व भजन आयुषी देशमुख व तनिष्का ने व्यक्तिगत गीत प्रस्तुत की। अतिथियों का सम्मान कन्हैयालाल सोनगरा, राजनारायण, ब्रजेश आर्य ने किया। सभागृह में सामाजिक समरसता समिति के संरक्षक गुरूचरण बग्गा, मार्गर्शक विनोद मेहता, गोपालकृष्ण पाटिल, रविप्रकाश बुंदेला, नरेन्द्र मेहता, प्रकाश पालीवाल, नंदुभाई आडवाणी, डॉ घनश्याम बटवाल, चेतन जोशी, भगवानदास ज्ञानानी उपस्थित थे। संचालन ब्रजेश जोशी ने किया। आभार दाउभाई विजयवर्गीय ने माना। समारोह में नगर के सभी समाजों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए।

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