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सत्यनिष्ठ प्रेम द्वारा मन में बैठे अहंकार रूपी असुर का करें त्याग

locationमंदसौरPublished: Jan 22, 2019 08:52:55 pm

Submitted by:

Jagdish Vasuniya

सत्यनिष्ठ प्रेम द्वारा मन में बैठे अहंकार रूपी असुर का करें त्याग

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सत्यनिष्ठ प्रेम द्वारा मन में बैठे अहंकार रूपी असुर का करें त्याग

मंदसौर । गरोठ अहंकार मानव के लिए सबसे बड़ा शत्रु है सत्यनिष्ठ प्रेम द्वारा ही अहंकार रूपी मन में बैठे असुर का नाश संभव है। यह बात भानपुरा पीठ के शंकराचार्य स्वामी दिव्यानंद महाराज ने कही। श्रीमद् भागवतकथा के सातवें दिवस पर भानपुरा पीठ के युवाचार्य स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि कंस रूपी अहंकार के भय से हम सभी भयभीत रहते है। अंतर्मन में स्थित परमपिता परमेश्वर के अंशरूपी श्रीकृष्ण की अनुभूति के अभाव में हम निरन्तर पाप में धंसते चले जाते हैं। ज्ञान, सत्संग, सत्यनिष्ठ एवं नि:श्चल प्रेम के द्वारा अंतर्मन में स्थित परमेश्वर की अनुभूति होने पर हम कंस और कंस से सम्बंधित सभी असुर रूपी समस्याओं का अंत करने में सक्षम हो जाएंगे। कंस की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि कंस हमारा अपना घमंड व अहम है। ज्ञान के द्वारा इस असुर को समाप्त कर परमेश्वर प्राप्ति के मार्ग में बढ़ा जा सकता हैं। हमें गुरु एवं गुरुमाता के सच्ची श्रद्धा रखना चाहिए इसके फलस्वरूप समय के पूर्व ही हम उच्च शिक्षा को प्राप्त हो जाते हैं।
गुरूर का नहीं गुरु का गुणगान करें
हमें गुरूर का नहीं गुरु का गुणगान करना चाहिए। मेरे नाम व रूप अनेकानेक हैं और मुझ तक पहुंचने के अनेक मार्ग है बस आप सही मार्ग पर चले तो मैं आपको मिल जाऊंगा। मुचकुन्द राक्षस पर कृपा करने के कारण श्रीकृष्ण का नाम मुकुन्द पड़ा। अहंकार रहित एवं शांत सौम्य ब्राह्मण सदैव पूज्यनीय हैं। अपने पर लगे किसी भी कलंक को दूर करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित ही है। प्रभु बड़े यज्ञ हवन के बजाय उस मानव से प्रसन्न हो जाते है जो अपने गुरु की नि:स्वार्थ सेवा भक्ति करता है। संपत्ति के स्थान पर भक्ति, सत्संग एवं ज्ञान, नि:श्चल प्रेम, अपनत्व के कारण सुदामा श्रीकृष्ण की ओर आकर्षित हुए न कि धन- वैभव के कारण। संतो का मुख्य कार्य मानवजीवो का कल्याण करना होता हैं। देवता तो देव दानव दोनों के लिए उत्तममार्ग प्राप्ति के लिए संकल्पित हैं। संसार में परमेश्वर के बाद सबसे दुर्लभ यदि कोई हैं तो वह नि:स्वार्थ भक्त व शिष्य हैं। शिष्य वही श्रेष्ठ है जो गुरु को ही सर्वशक्तिमान माने और सर्वव्यात जाने।

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