धर्मसभा में कहा कि अंतगढ दशानसुत्र के आठवे वर्ग मेें राजा क्षणिक की 10 पत्नियों ने अपने प्रवृत्त किया। इसका विस्तार से वर्णन हे। इन 10 रानियों के पुत्र राजा कोणिक द्वारा कोणिक के प्रति बैर रखने की बजाय उसके प्रति क्षमापना का भाव रखा और संयम लेकर कठोर तप साधना की। इन रानीयों के जीवन में स्त्रियों प्रेरणा ले तथा अपने जीवन में बैर भाव रखने की बजाय क्षमापना का भाव अपनाते हुए तप तपस्या में आगे बढे और जीवन को पूण्यकर्मो में लगाए।
क्षमा करने वाला सुख पाता है
साध्वी आकाशा ने कहा कि जो दूसरों की गलतियों को भुल नही पाते है तथा सदैव ही उनसे बदला लेने की भावना मन में पाल कर रखते है वे जीवन में कभी भी सुख नहीं पाते है क्योकि बैर की भावना केवल दुख देती है यदि हम क्षमा की भावना मन में लाते है तो हमारे मन को अवश्य ही सुख मिलता है। साध्वी सुभाषा ने कहा कि तुलसीदास ने उस जीभ को धन्य कहा कि है जो प्रभु का नाम लेती है यदि हम अपनी जिव्हा से 24 तीर्थ करो, नवकार महामंत्र का जाप करते हैैै। प्रभूु की स्तुतिया गातें है तो हमारी जिरहा की सार्थकता सिद्ध होती है। कटु वचन बोलने व अनावश्यक बाते करने वाली जिव्हा का होना बेकार है।
तपस्वियों का हुआ बहुमान
धर्मसभा में 8 उपवास व उससे अधिक उपवास करने वाले तपस्वियों का श्रीसंघ की ओर से माला पहनाकर प्रशस्त्रि पत्र उपहार भेटकर बहुमान किया गया। धर्मसभा में साध्वी डॉ सुभाषा ने अंतगढ दशान सुत्र से संबंधित 15 प्रश्न श्रावक श्राविकाओं से पूछे सही उत्तर देने वालो को चत्तरबाई उकावत की स्मृति में अशोक उकावत परिवार ने प्रभावना स्वरूप राशि भेट की।