भाजपा सरकार में ग्रोथ के हिसाब से नहीं हुर्इ निवेशकों की कमार्इ
जेफ्रीज इंडिया प्रा. के विश्लेषकों ने हाल ही में अपने स्ट्रैटेजी नोट में लिखा है, “यदि आप पांच साल बाद अचानक से सोकर उठें आैर किसानों, अारक्षण, र्इंधन की कीमतों, मंदिर आैर राजकोषीय घाटे के बारे में पढ़ेंगे तो पाएंगे की एनडीए सरकार की साख को लेकर बाजार में क्या हो-हल्ला है।” ध्यान देने वाली बात है कि साल 2014 के बाद निफ्टी इंडेक्स में आैसत प्राइस अर्निंग अधिकतम 21 के स्तर पर रहा है। हाल ही में यूबीएस सिक्योरिटीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अर्निंग ग्रोथ करीब 5.3 फीसदी रहा है। जबकि पहले की सरकार पर नजर डालें तो पाएंगे की यूनाइटेड प्रोग्रेसिंग अलायंस (यूपीए) सरकार के दौर में आैसतन वैल्यूएशन 17.6 फीसदी रहा है। हालांकि, इस दौरान अर्निंग ग्रोथ 21.7 फीसदी के स्तर पर रहा था।
कांग्रेस के कार्यकाल में बाजार का बेहतर प्रदर्शन
अर्निंग में दबाव के बाद भी मौजूदा सरकार के दौर में वैल्यूएशन में इजाफा हुआ है। मैक्रो सेक्टर में बढ़ती स्थिरता इसका प्रमुख कारण है। साथ ही सरकार का रिफाॅर्म एजेंडे से लंबी अवधि में ग्रोथ की क्षमता को देखते हुए निवेशकों को उत्साह बढ़ा है। सरकार की समर्थन करने वालों को अब एक बात साफ होती नजर आ रही है कि अर्निंग ग्रोथ के बिना उन्हें कुछ खास रिटर्न नहीं मिलेगा। बीते पांच सालों में मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान, बीएसर्इ सेंसेक्स पर आैसतन वार्षिक ग्रोथ 9.1 फीसदी ही रहा है। बीएसर्इ 500 इंडेक्स की बात करें तो इसमें हल्की बेहतर ग्रोथ देखने को मिली है। बीएसर्इ 500 इंडेक्स में यह ग्रोथ 10.7 फीसदी की रही है। लेकिन, यहीं आंकड़े आप पिछली सरकार की तुलना में देखेंगे तो चौंक जाएंगे। पिछली सरकार की कार्यकाल के दौरान यह अांकड़े क्रमशः 14 फीसदी आैर 18 फीसदी रही है। जेफ्रीज ने अपने नोट में यह भी कहा है कि बीते 4 दशकों में कांग्रेस की सरकार के दौरान इक्विटी बाजार ने बेहतर परफाॅर्म किया है।
एनडीए सरकार में बाजार को नहीं मिली वैश्विक सपोर्ट
एक म्यूचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी, दोनों सरकार की ट्रेंड को देखते हुए कहते हैं कि यह बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप सही समय पर सही जगह पर रहे हों। उन्होंने कहा, “साल 2003 आैर 2009 के बाद बाजार में तेजी कर्इ वैश्विक कारणों की वजह से भी रही है। उस दौरान उभरते बाजाराें में वैश्विक तरलता बाजार में तेजी लेकर आया था। कांग्रेस द्वारा ग्रामीण रोजगार योजना ने भी काफी हद तक मदद की थी, लेकिन आप इसे ही बड़े वाहक के तौर पर नहीं देख सकते हैं।” दूसरी तरफ, मौजूदा सरकार के कार्यकाल में वैश्विक हालात कुछ खास बेहतर नहीं रहे हैं। एनडीए सरकार का यह कार्यकाल एक एेसे दौर में खत्म हो रहा है जब वैश्विक स्लोडाउन का समय चल रहा है।
मोदी रिफाॅर्म्स का पूर्णतः असर मिलना अभी बाकी
रिफाॅर्म के नजरिए से देखें तो एनडीए सरकार ने मौजूदा कार्यकाल में कर्इ बड़े कदम उठाए हैं। सरकार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) आैर दिवालिया कानून लेकर आर्इ है। हालांकि, इन सब रिफाॅर्म्स का असर पूर्णतः देखना बाकी है। हालांकि, सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदम अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। नवंबर 2016 में किया गया नोटबंदी भी इनमें से एक है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के लिहाज से नोटबंदी ने एक बड़ा झटका दिया है। सरकार ने भले ही कैशलेस अर्थव्यवस्था की मंशा से यह कदम उठार्इ हो लेकिन इससे कुछ खास लाभ नहीं मिला है। इसके उलट, सरकार के इस कदम से ग्रामीण क्षेत्रों में मांग आैर कमार्इ पर बुरा असर देखने को मिला है।
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