इसके पहले ऐसे चलता था ये बिजनेस
जीएसटी लागू होने के पहले कैटरिंग और टेंट के बिजनेस में जीएसटी नहीं देना पड़ता था। बस स्टॉक में पड़ेे माल पर साल में एक बार वैट का 6 फीसदी कम्पाउंडिंग फीस दी जाती थी। जो की लगभग 5 लाख के माल पर 15 हजार रुपया होता था। इसे व्यापारी अपने ग्राहकों से नहीं वसूलते थे। लोग पक्के बिल से बचने के लिए कच्चे बिल पर ही अपना काम चला लेते थे। ऐसे ही एक व्यापारी संगठन का कहना है कि, टेंट बुकिंग का काम अब तक कच्चे बिल पर चलता था। अब क्रेडिट लेने के लिए हमें पक्के बिल ही काटने होंगे। ऐसे में टैक्स का सारा बोझ ग्राहकों को ही उठाना होगा। हम सरकार से मांग कर रहे हैं जीएसटी की जगह कम्पाउंडिंग फीस ही लिया जाए।
कैटरिंग बिजनेस से जीएसटी हटाने की उठने लगी मांग
कैटरिंग व्यवस्था की बात करें तो इसमें 40 फीसदी कम पर कोई टैक्स नहीं लगता था जिसमेंं दिहाड़ी मजदूर भी शामिल थे। बाकी के बचे 60 फीसदी पर हर मद में 10 फीसदी का औसत टैक्स लगाया जाता था। लेकिन अब सरकार ने इसे खत्म करके पूरे कैटरिंग बिजनेस पर एकमुश्त 18 फीसदी का जीएसटी लगाने को फैसला लिया है। ऐसे में दावत देने के लिए अब आपको जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी। ऐसे में करोबारियों के लिए भी उधार देने में अब सोचना पड़ेगा। इसको लेकर कई टेंट एसोसिएशन ने जीएसटी हटाने की मांग की है। इनका कहना है कि, टेंट बिजनेस एक मजदूर प्रधान बिजनेस है, जो पूंजी की तुलना में ज्यादा रोजगार पैदा करता है। यदि जीएसटी हटाना संभव नहीं है तो इसे कम करके 5 फीसदी किया जाएगा।