वस्तु एवं सेवा कर लागू होने के एक महीना बीतने के बाद भी कारोबारी से लेकर आम लोगों की उलझनें कम नहीं हुई हैं। आजादी के बाद से अब तक का सबसे बड़े इस टैक्स सुधार को सरकार फायदेमंद बता रही है, लेकिन रोटी, कपड़ा और मकान तीनों महंगे हुए हैं।
नई दिल्ली। वस्तु एवं सेवा कर लागू होने के एक महीना बीतने के बाद भी कारोबारी से लेकर आम लोगों की उलझनें कम नहीं हुई हैं। आजादी के बाद से अब तक का सबसे बड़े इस टैक्स सुधार को सरकार फायदेमंद बता रही है, लेकिन रोटी, कपड़ा और मकान तीनों महंगे हुए हैं। जीएसटी लागू होने से बुनियादी वस्तुएं महंगी हुई हैं, जबकि कारोबार व कारोबारी दोनों को झटका लगा है। देश भर में उद्योग जगत की ओर से जीएसटी की विसंगतियों को लेकर विरोध शुरू कर दिया है। सबसे ज्यादा असर छोटे कारोबारियों पर हुआ है। उनका कहना है, नई कर व्यवस्था से कारोबार में जबरदस्त गिरावट आई है। नई कर व्यवस्था में पेचिदगी के कारण उनके लिए काम करना मुश्किनल हो रहा है। इसके चलते वह अपना कारोबार सही तरीके से कर नहीं पा रहे हैं। ऐसे में सररकारी दखल जरुरी है।
घर निर्माण महंगा
अहिला चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष रमेश खंडेलवाल का कहना है कि महंगाई बढ़ी है, खानपान, कपड़े और घर बनाना और जरूरत की कई चीजें महंगी हो चुकी हैा। इसलिए जीएसटी रेट्स को सही करने की जरूरत है।
कपड़ा व्यापारी परेशान
क्लाथ मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष हंसराज जैन ने कहा कि कपड़ा बुनियादी जरूरत है लेकिन इसे भी जीएसटी के दायरे में ले आया गया है। इससे कारोबारी परेशानी में पड़ गए हैं और कारोबार नहीं कर पा रहे हैं।
छोटे कारोबारी डरें नहीं
सीए एसोसिएशन के नवीन खंडेलवाल ने कहा कि छोटे कारोबारियों को जीएसटी से डरने की जरुरत नहीं है। वो इसे अच्छे से समझ कर कारोबार को ढंग से चला सकते हैं ।
जीएसटी के बाद एक पर एक फ्री ऑफर्स बंद
जीएसटी लागू होने के बाद एक पर एक फ्री ऑफर्स कंपनियों को देना भारी पड़ रहा है। ऐसा इसलिए कि जीएसटी के तहत कंपनियों की ओर से उपभोक्ता को कोई भी चीज फ्री या मुफ्त में देने पर कंपनियों को उस चीज पर अतिरिक्त टैक्स चुकाना होगा और जब वे किसी प्रॉडक्ट की बिक्री को मुफ्त के तौर पर दिखाएंगी तो उन्हें उस पर इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा। इसलिए अब कंपनियां मार्केटिंग के लिए नई रणनीति अपनाने जा रही है जिसके तहत वन-गेट-वन फ्री ऑफर्स समाप्त कर रहे हैं और सीधे डिस्काउंट देगी।
बड़ी कंपनियों पर असर नहीं लेकिन छोटे का बुरा हाल
एमपीएसएस डीएमए के सेक्रेटरी अमित चावला ने कहा कि दवा निर्माताओं को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन छोटे दवा व्यापारियों को समस्याएं हो रही हैं। एक हजार तरह की दवाएं होती हैं एक छोटी दवा की दुकान में। ऐसे में हर एक दवा का बिल बनाना, दुकानदार के लिए काफी समस्या पैदा करने वाला है। दुकानदार को दिनभर एक ही चिंता सता रही होती है कि बिल ठीक से बन जाएं, जिससे इनपुट क्रेडिट लेने में परेशानी न हो।