एमएसएमई पर पड़ रहा असर
जानकारों के मुताबिक, 28 फीसदी वाले टैक्स स्लैब में बदलाव करने की इसलिए जरूरत हैं कि क्योंकि इस स्लैब में कुछ वस्तुओं को माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) बनाते हैं और इस वजह से उन्हें कुछ दबाव का सामना करना पड़ रहा हैं। इस स्लैब में प्लास्टिक फर्नीचर, न्यूट्रिशनल ड्रिंक्स, ऑटो पार्ट्स, प्लाईवुड, इलेक्ट्रिकल फिटिंग्स, सीमेंट, सीलिंग फैन और घडिय़ों के अलावा कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटोमोबाइल और तम्बाकू जैसे उत्पादों को रखा गया हैं। इसमें किसी भी तरह के बदलाव के लिए जीएसटी काउंसिल की मुहर लगानी होगी। जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक 9-10 नवंबर को गुवाहाटी में होना हैं। उम्मीद किया जा रहा है कि इस बैठक में टैक्स स्लैब में आने वाली कई वस्तूओं में बदलाव किया जा सकता हैं।
वित्त मंत्री ने दिया था बदलाव के संकेत
एक सामरोह में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने भी इस बारें मे संकेत दिए थे। उन्होने कहा था कि, कुछ वस्तूओं पर लगने वाला 28 फीसदी टैक्स रेट को थोड़े समय बाद हम उसे 18 फीसदी वाले टैक्स स्लैब में रख देंगे। इसके बाद 28 फीसदी वाले टैक्स स्लैब में लग्जरी आइटम्स ही रह जाएंगे। हालांकि उन्होने यह भी कहा था कि, इस स्लैब में बदलाव करने पर सतर्कता बरतनी होगी नहीं तो अचानक परिवर्तन करने से इंफ्लेशन रेट पर सीधा असर पड़ेगा। कई ट्रेड और इडस्ट्री के प्रमुखों ने इसके लिए सरकार से अनुरोध किया हैं।
रेट में बदलाव के लिए जारी किया गया था गाइडलाइंस
अक्टूबर माह में हुई बैठक में काउंसिल ने एक कॉन्सेप्ट पेपर अडॉप्ट किया था, जिसमें रेट्स में बदलाव के लिए कई गाइडलाइंस बताया गया था। इस गाइडलाइंस के अनुसार, कारखाने में बनने वाले किसी भी प्रोडक्ट पर टैक्स में छूट नहीं दिया जाएगा, क्योंकि इससे मेक इन इंडिया पर असर पड़ सकता हैं। ऐसे में यदि कोई राज्य किसी प्रोडक्ट में टैक्स असर को कम करना चाहता हैं तो इसके लिए उसे डायरेक्ट सब्सिडी का रास्ता चुनना होगा।