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अमृतं जलम्: सवा पांच हजार साल पुराने कुंड की बुझेगी प्यास, भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है इतिहास

locationमथुराPublished: May 16, 2019 06:06:07 pm

पत्रिका ने जल संचयन और पुराने नदी, तालाब, कुंड, पोखरों का पुनर्द्धार करने के लिए लोगों को प्रेरित करने का बीड़ा उठाया है। इस अभियान को नाम दिया गया है अमृतं जलम्।

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अमृतं जलम्: सवा पांच हजार साल पुराना कुंड की बुझेगी प्यास, भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है इतिहास

मथुरा। जल ही जीवन है, यह बात हम सभी को मालूम है फिर भी हम आज भी जल संचयन के लिए उतने जागरुक नहीं हैं जितना होना चाहिए। आज पानी के तमाम श्रोत लगातार सूख रहे हैं। नदियां सिकुड़ रही हैं। तालाब सूखे गड्डे में तब्दील हो गए हैं। कुंए भी प्यासे हैं। ऐसे में हमें सोचना होगा कि आने वाली पीढ़ी के लिए हम क्या छोड़ कर जा रहे हैं। पत्रिका ने इसी सोच के साथ जल संचयन और पुराने नदी, तालाब, कुंड, पोखरों का पुनर्द्धार करने के लिए लोगों को प्रेरित करने का बीड़ा उठाया है। इस अभियान को नाम दिया गया है अमृतं जलम्। धर्मनगरी में भी इस अभियान के तहत एक पौराणिक कुंड का पुनर्द्धार किया गया। जानिए इस कुंड का इतिहास।
सवा पांच हजार साल पुराना है घाट

गुरुवार को पत्रिका के द्वारा चलाए जा रहे अभियान अमृतं जलम् के बैनर तले जिले के चक्रतीर्थ घाट पर सफाई अभियान चलाया गया। इस अभियान में स्थानीय लोगों के साथ साथ यमुना मिशन के कार्यकर्ताओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। यमुना मिशन के पदाधिकारी अनिल शर्मा और कार्यकर्ता ठाकुर हरि सिंह ने बताया यह कुंड हजारों साल पुराना है और इसकी मान्यता भगवान श्री कृष्ण के समय से जुड़ी है। अनिल शर्मा ने जानकारी देते हुए यह भी बताया कि घाट सवा पांच हजार साल पुराना है और इसका जीर्णोद्धार हम लोगों ने 2015 में कराया। इसकी देखरेख यमुना मिशन के द्वारा ही की जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि यहां मृत लोगों को लाकर मोक्ष प्राप्त करवाया जाता था।
ये दिया श्राप

इस घाट का नाम चक्रतीर्थ इसलिए पड़ा क्योंकि एक बार अमरीश नाम के राजा ने दुर्वासा ऋषि को भोजन पर बुलाया। सुबह से शाम हो गई लेकिन दुर्वासा ऋषि राजा के यहां समय से नहीं पहुंचे। भोजन का आमंत्रण और भी संतों को था और सभी संतों ने राजा अमरीश से यह कहकर भोजन शुरू करा दिया कि दुर्वासा ऋषि का आना असंभव है। राजा ने भोजन शुरू करा दिया लेकिन जब दुर्वासा ऋषि ने आकर देखा कि उनके आने से पहले ही भोजन शुरू हो गया है। राजा अमरीश को दुर्वासा ऋषि ने क्रोधित होकर श्राप दिया कि तेरा वंश नाश हो जाएगा।
इसलिए पड़ा चक्रतीर्थ घाट नाम

ठाकुर हरि सिंह का कहना है कि इस घाट का चक्रतीर्थ नाम घाट इसलिए पड़ा क्योंकि जब दुर्वासा ऋषि ने राजा अमरीश को श्राप दिया था और उस श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपना चक्र छोड़ दिया और इस घाट पर आकर चक्र शांत हुआ। इसी कारण से इस घाट का नाम चक्रतीर्थ घाट पड़ा। उन्होंने यह भी बताया 1990 में इस घाट में यमुना जल भरा रहता था।
अतित्व बचाने के लिए चलाई मुहिम

चक्रतीर्थ घाट के पुजारी संम्मो ने बताया कि इसका अस्तित्व खत्म हो चुका था। इसके अस्तित्व को बचाने के लिए इन लोगों ने इस घाट का जीर्णोद्धार कराया ताकि इसका अस्तित्व बचा रहे।
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