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स्वयं प्रकट हुए बांके बिहारीमथुरा के रेलवे स्टेशन से बांके बिहारी मंदिर की दूरी महज 15 किलोमीटर है। यमुना एक्सप्रेस वे से करीब 12 किलोमीटर पर बांके बिहारी का मंदिर स्थित है। ठाकुर बांके बिहारी के दर्शन करने के लिए देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु यहां आते हैं और अपनी मनोकामना मांगते हैं। भगवान बांके बिहारी का स्वरूप स्वयं प्रकट है। इसे किसी कारीगर द्वारा निर्मित नहीं किया गया है। स्वामी हरिदास जी भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे और वह भगवान की भक्ति किया करते थे। इसी से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए और यह प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई। कहा जाता है कि बांके बिहारी मंदिर में जो प्रतिमा है, वह सिर्फ कृष्ण भगवान की नहीं है, बल्कि राधा और कृष्ण के मिलने से उत्पन्न हुई थी।
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बांके बिहारी की प्रतिमा का रहस्यभगवान बांके बिहारी की जो प्रतिमा है उसमें आधा भाग राधा का है और आधा भाग कृष्ण का। इन दोनों के मिलने से इस प्रतिमा का निर्माण हुआ था। भगवान बांके बिहारी का श्रृंगार भी राधा और कृष्ण के रूप में ही किया जाता है। भगवान बांके बिहारी की प्रतिमा पर आधा मुकुट राधा का राधा मुकुट कृष्ण का होता है।
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सखी भाव से सेवाबांके बिहारी के सेवायत भी सखी भाव से यह सेवा करते हैं, क्योंकि स्वामी हरिदास जी पूर्व जन्म में सखी थे और उसी भाव से भगवान बांके बिहारी की पूजा करते थे। तब से लेकर आज तक बांके बिहारी के सेवायत पुजारी भी अपने आप को सखी रूप में मानते हैं।
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ये है असली नाम
भगवान बांके बिहारी की आरती बेहद विशेष मानी जाती है। कहा जाता है कि जो करे बांके बिहारी की मंगला वह कभी न हो कंगला। यह आरती अन्य मंदिरों की तरह घंटे घड़ियाल या कोई वाद्ययंत्र बजाकर नहीं की जाती, बल्कि शांति से भगवान की नजर उतारने के लिए की जाती है। बांके बिहारी का प्राचीन नाम श्यामा श्याम कुंज बिहारी है, लेकिन अब इन्हें बांके बिहारी नाम से पुकारा जाता है। जो बांके बिहारी के दर्शन करने आता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।