जब श्रीकृष्ण ढाई वर्ष के थे तो एक दिन नंदबाबा उन्हें अपने साथ गाय चराने गोदी में उठाकर इसी भांडीर वन में आए। अचानक घनघोर घटा छाने से चारों तरफ अंधेरा हो गया। तेज़ आकाशीय बिजली कड़कने लगी और बारिश होने लगी। प्रकृति की इस लीला को देखकर नंदबाबा ने कृष्ण को अपने ह्दय से चिपका लिया तभी उन्होंने देखा की वृन्दावन की ओर से एक दिव्य प्रकाश तेज़ी से उनकी ओर आ रहा है। बाबा की आंखें बंद हो गयीं। जब बाबा की आंखें खुलीं तो सामने एक साढ़े बारह वर्ष की कन्या खड़ी दिखाई देती है और प्राकृतिक हलचल थम जाती है। वह नंदबाबा से कृष्ण को अपने साथ खेलने के लिए ले जाती है। वन में घूमते समय कृष्ण अचानक गोद से गायब हो जाते हैं और उनके समक्ष राधाजी की आयु के बराबर पंद्रह वर्षीय बालक दिखाई देता है।
श्रीकृष्ण की इस लीला को ब्रह्माजी देख रहे थे। वह अचानक प्रकट हो गये। ब्रह्माजी ने कृष्ण से निवेदन किया कि हे प्रभु में आप दोनों को एक डोर में बांधना चाहता हूं। कृष्ण बोले जैसी आपकी इच्छा। फिर इसी भांडीर वन में ब्रह्माजी ने पुरोहित बनकर राधा कृष्ण का विवाह कराया।मंदिर के पुजारी गोपाल बाबा का यह भी कहना है की जब राधा और कृष्ण का विवाह हुआ था तो केवल 4 लोग इस विवाह में मौजूद थे और नारद जी ने राधा का कन्यादान किया था।
कहते हैं की भांडीर वन में जिस वटवृक्ष के नीचे ब्रह्माजी ने विवाह कराया था उसकी जटाएं विशालकाय फैली हुई थीं। उस वट वृक्ष की शाखाओं से बना विवाह मंडप आज भी मौजूद हैं।राधाजी की मांग में सिंदूर भरते श्रीकृष्ण की दुर्लभ छवि इस मंदिर में प्राचीन समय से स्थापित है। पूरे भारत में ऐसा मंदिर नहीं है । कहते हैं इसी भांडीर वन में भगवान श्रीकृष्ण ने अनेक असुरों का भी संहार किया था।