वर्ष 1978 में फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग भारत घूमने आईं थीं। फिर यहीं की होकर रह गईं। वे यहां अपना वक्त पूजा पाठ आदि में बिताती थीं। इसी बीच किसी ने उन्हें गाय पालने की सलाह दी। सलाह मानकर उन्होंने गाय पाल ली। धीरे—धीरे उन्हें गाय से प्रेम होने लगा। एक दिन उन्हें ब्रज में सड़क किनारे एक बीमार गाय तड़पते हुए दिखी। गाय की नाजुक हालत देखकर उन्होंने गायों की सेवा करने का निर्णय लिया। उन्होंने गोवर्धन के पास कोन्हाई गांव में जमीन किराये पर ली और राधा सुरभि नाम से एक गौशाला की शुरुआत की। तब से आज तक उन्होंने अपना पूरा जीवन इन गायों को ही समर्पित कर दिया है। लोग उन्हें यहां सुदेवी के नाम से पुकारने लगे।
सुदेवी की गौशाला में करीब 1200 बीमार गायें रहती हैं। जिनकी देखरेख और सेवा का जिम्मा सुदेवी और उनके साथ काम कर रहे कुछ गौसेवकों पर है। रोजाना गौशाला की एंबुलेंस करीब आठ से 10 बीमार गायों को गौशाला पर लाती है। वे उनकी मां की तरह देखरेख करती हैं। उनके जख्मों को भरकर उनका इलाज करती हैं। गौशाला में इन गायों की सेवा पर हर महीने लगभग 25 लाख रुपए का खर्च होता है। इसके लिए वह अपनी पैतृक संपत्ति का इस्तेमाल करती हैं। इसके अलावा कुछ खर्च गौशाला को मिले दान से पूरा हो जाता है।
तीन दिसंबर को सुदेवी का वीजा समाप्त हो रहा है। कानूनी अड़चनों के कारण इसकी अवधि भी नहीं बढ़ पा रही है। इस कारण सुदेवी को जर्मनी वापस लौटना पड़ सकता है। यदि सुदेवी की समस्या नहीं सुलझती तो हो सकता है कि वे भारत फिर कभी वापस न आ सकें। इस खबर ने सुदेवी को पूरी तरह तोड़कर रख दिया है। सैकड़ों गायों के जीवन के बारे में सोचकर सुदेवी की आंखों में आंसू भर आते हैं। यदि वे वापस नहीं लौटीं तो गौशाला बंद हो जाएगी। इससे जहां सैकड़ों गायें अनाथ होंगी, वहीं गौशाला में काम कर रहे करीब 60 लोग बेरोजगार हो जाएंगे। उन्हें रोकने के लिए ब्रजवासी भारत सरकार से उनका वीजा बढ़ाए जाने की अपील कर रहे हैं।