व्रत करने वाले इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थान में आसन पर बैठ जाएं। पूजा के स्थान पर एक स्वच्छ रंगोली बनाते हैं। उस रंगोली पर चौकी रखते हैं। उस पर सतिया बनाते हैं उस सतिए पर केले के पत्ते रखते हैं। उस पत्ते पर सत्य नारायण भगवान की तस्वीर, गणेश जी की प्रतिमा एवम कलश स्थापित किया जाता हैं। सबसे पहले कलश की पूजा करते हैं, फिर श्री गणेश, गौरी, वरुण, विष्णु आदि सब देवताओं का ध्यान करके पूजन करे और संकल्प करें कि मैं सत्यनारायण स्वामी का पूजन तथा कथा श्रवण सदैव करूंगा। पुष्प हाथ में लेकर सत्य नारायण का ध्यान करें, यज्ञोपवीत, पुष्प, धूप, नैवैद्य आदि से युक्त होकर स्तुति करें – हे भगवान! मैंने श्रद्धापूर्वक फल, जल आदि सब सामग्री आपको अर्पण की है, इसे स्वीकार कीजिए। मेरा आपको बारम्बार नमस्कार है। इसके बाद सत्यनारायण जी की कथा पढ़े अथवा श्रवण करे।
सत्य को मनुष्य में जगाए रखने के लिए इस पूजा का महत्व आध्यात्म में निकलता है। किसी भी विशेष कार्य जैसे गृह प्रवेश, संतान उत्पत्ति, मुंडन, शादी के वक्त, जन्मदिन आदि शुभ कार्यों में ये पूजा और कथा कराई जाती हैं। मनोकामना पूरी करने के लिए Satyanarayan Katha को कई लोग साल में कई बार विधि विधान से करवाते हैं। गरीबों और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देते हैं। कई लोग मान्यता के स्वरूप में भी इनकी पूजा एवं कथा करते हैं और कई भगवान को धन्यवाद देने के लिए भी यह करते हैं।