मुरली घाट पर खेली गई होली
सोमवार का दोपहर में छाड़ीमार होली के पहले चरण में गोकुल में यमुना किनारे स्थित नंद किले के नंद भवन में ठाकुर जी के समक्ष राजभोग रखा गया। भगवान श्री कृष्ण और बलराम होली खेलने के लिए मुरली घाट को निकले। बाल स्वरूप भगवान के डोला को लेकर सेवायत चल रहे थे। उनके आगे ढोल नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते गाते आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में जगह-जगह फूलों की वर्षा हुई। भक्त अपने ठाकुर जी को नमन कर रहे थे। डोला के पीछे हाथों में हरे बांस की छड़ी लेकर गोपियां चल रही थीं। विभिन्न समुदायों की रसिया टोली रसिया गायन करती हुई निकल रही थीं। नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा, जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था। भजन कीर्तन, रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई।
सोमवार का दोपहर में छाड़ीमार होली के पहले चरण में गोकुल में यमुना किनारे स्थित नंद किले के नंद भवन में ठाकुर जी के समक्ष राजभोग रखा गया। भगवान श्री कृष्ण और बलराम होली खेलने के लिए मुरली घाट को निकले। बाल स्वरूप भगवान के डोला को लेकर सेवायत चल रहे थे। उनके आगे ढोल नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते गाते आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में जगह-जगह फूलों की वर्षा हुई। भक्त अपने ठाकुर जी को नमन कर रहे थे। डोला के पीछे हाथों में हरे बांस की छड़ी लेकर गोपियां चल रही थीं। विभिन्न समुदायों की रसिया टोली रसिया गायन करती हुई निकल रही थीं। नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा, जहां भगवान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था। भजन कीर्तन, रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई।
यहां कान्हा पालना में
भगवान कृष्ण और बलराम पांच वर्ष की आयु तक गोकुल में रहे थे। इसलिये उनके लाला को कहीं चोट न लग जाए इसलिए यहां छड़ी मार होली खेली जाती है। गोकुल में भगवान कृष्ण पालना में झूले हैं वही स्वरूप आज भी यहां झलकता है। सेवायत मोहन लाल ने बताया कि यहां अधिकांशतः बल्लभ कुल संप्रदाय को मानने वाले श्रद्धालु होली खेलने के लिए आते हैं। ठीक दो बजे ठाकुर जी की अलौकिक छवि के सामने से पर्दा हटते ही जयजयकार हो उठी।
भगवान कृष्ण और बलराम पांच वर्ष की आयु तक गोकुल में रहे थे। इसलिये उनके लाला को कहीं चोट न लग जाए इसलिए यहां छड़ी मार होली खेली जाती है। गोकुल में भगवान कृष्ण पालना में झूले हैं वही स्वरूप आज भी यहां झलकता है। सेवायत मोहन लाल ने बताया कि यहां अधिकांशतः बल्लभ कुल संप्रदाय को मानने वाले श्रद्धालु होली खेलने के लिए आते हैं। ठीक दो बजे ठाकुर जी की अलौकिक छवि के सामने से पर्दा हटते ही जयजयकार हो उठी।
मुरलीघाट की महत्ता
छड़ीमार होली गोकुल के मुरलीधर घाट से शुरू होती है। माना जाता है कि इसी घाट पर कान्हा ने सबसे पहले अपने अधरों पर मुरली रखी थी। पहले यहां हुरंगा खेला जाता है यानि गोपियां कान्हा बने हुरियारों पर प्यार से छडि़यां बरसाती हैं। इसके बाद रंग- गुलाल से होली खेलने का दौर शुरू होता है।
छड़ीमार होली गोकुल के मुरलीधर घाट से शुरू होती है। माना जाता है कि इसी घाट पर कान्हा ने सबसे पहले अपने अधरों पर मुरली रखी थी। पहले यहां हुरंगा खेला जाता है यानि गोपियां कान्हा बने हुरियारों पर प्यार से छडि़यां बरसाती हैं। इसके बाद रंग- गुलाल से होली खेलने का दौर शुरू होता है।
गोकुल नगर पंचायत के चेयरमैन संजय दीक्षित ने बताया कि गोकुल गांव में और मुरलीधर घाट पर विषेष व्यवस्था की गई। गोकुल के प्रवेश द्वारों को विशेषरूप से सजाया गया। प्रआस किया गया कि बाहर से आने वाले श्रद्धालु गोकुल की अच्छी छवि और प्राकृतिक सुंदरता की सुखद अनुभूतियों के साथ वापस लौटें।