मथुरा

यहां एक हजार रुपये में मिलता है मर्डर का ’सामान’

चुनाव में बंदूकें जमा होने के बाद भी मतदान केन्द्रों पर झगड़ों में कट्टों से गोलियां चलाने की कई वारदातें हुई हैं।

मथुराApr 05, 2019 / 07:09 am

अमित शर्मा

tamancha

मथुरा। शस्त्र लाइसेंस लेने की प्रक्रिया पुलिस और प्रशासन ने जटिल की तो लोगों में अवैध हथियार रखने का शौक बढ़ गया है। यही कारण है कि कान्हा की नगरी में अवैध हथियारों के बढ़ते प्रयोग के चलते अपराधिक वारदातों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। मथुरा के गांवों में भी कट्टों की खरीद विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर होती रही है। चुनाव में बंदूकें जमा होने के बाद भी मतदान केन्द्रों पर झगड़ों में कट्टों से गोलियां चलाने की कई वारदातें हुई हैं। वहीं थानों में फोर्स की कमी के कारण पुलिस अवैध हथियारों को पकड़ने और इस कारोबार की चेन को उजागर करने में सफल नहीं हो पाती है।
ये है कीमत

अवैध हथियार के सप्लायर लोगों को पकड़ने के लिए पुलिस को जिले व राज्य से बाहर जाना पड़ता है इसके लिए पुलिस के पास पर्याप्त फोर्स नहीं होता। पुलिस सिर्फ पीएचक्यू से मिले टास्क को पूरा करने पर ध्यान देती है। कट्टों के उपयोग व वारदातों का ग्राफ, आम आदमी में असुरक्षा की भावना पैदा कर रहा है। यही कारण है कि बीते पांच सालों में पुलिस द्वारा पकड़े गए अवैध हथियारों की संख्या में लगभग दो गुना इजाफा हुआ है। एक हजार रुपए कीमत में 12 बोर का कट्टा व 15 सौ रुपए में 315 बोर का कट्टा तथा तीन से पांच हजार रुपए में कंट्रीमेड पिस्टल व रिवाल्वर उपलब्ध होती हैं। वहीं 315 बोर से लेकर 12 बोर के कट्टे का दुरुपयोग संगीन अपराध घटित करने में हो रहा है। आपराधिक मानसिकता के लोग लूट, डकैती व हत्या के अपराधों में करते हैं। कानून की पेचीदगियों के कारण पुलिस नहीं पकड़ती।
इन जिलों से आ रहे अवैध हथियार

अवैध शस्त्र कहां से आए, किसने बनाए, किसने खरीदे और किसने अपराध घटित किए, यह पुलिस की पड़ताल का विषय होना चाहिए था लेकिन पुलिस कप्तानों ने इंस्पेक्टर्स से इस विषय पर काम नहीं कराया। पुलिस सूत्रों का मानना है कि अवैध हथियारों की सप्लाई बिहार के मुंगेर, यूपी के इटावा मैनपुरी, मथुरा के हाथिया व मध्यप्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, धार व खरगोन जिलों से होती है।
तह में नहीं जाती पुलिस

पुलिस ने जब-जब बड़ी संख्या में हथियार पकड़े हैं, तब तब मुल्जिमों की गिरफ्तारी व नाममात्र के रिमांड तक मामला सिमट गया। एसटीएफ की मंशा है कि हथियार बनाने से लेकर उसकी मार्केटिंग व ब्रांडिंग करने वाले तत्व, सेल्समैन व खरीद करने वालों के बीच की पूरी चेन को पकड़ा जाए। ताकि अवैध हथियारों के ठिकानों, स्मगलरों व उनके बिजनेस की परत खुल सकें।

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