मथुरा

जब लुट गए कान्हा, पढ़िए ऐसी कहानी जो आपको बताएगी भगवान कैसे मिल सकते हैं

मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।

मथुराFeb 28, 2019 / 07:29 am

Bhanu Pratap

radha krishna

एक पंडित जी थे। वे रोज घर-घर जाकर भागवत गीता का पाठ करते थे। एक दिन उन्हें एक चोर ने पकड़ लिया और कहा तेरे पास जो कुछ भी है मुझे दे दो। तब पंडित जी बोले कि बेटा मेरे पास कुछ भी नहीं है। तुम एक काम करना, मैं यहीं पड़ोस के घर में जाकर भागवत गीता का पाठ करता हूँ, वो यजमान बहुत दानी लोग हैं, जब मैं कथा सुना रहा होऊंगा, तुम उनके घर में जाकर चोरी कर लेना। चोर मान गया।
अगले दिन जब पंडित जी कथा सुना रहे थे तब वो चोर भी वहां आ गया। तब पंडित जी बोले कि यहाँ से मीलों दूर एक गाँव है वृन्दावन, वहां पर एक लड़का आता है जिसका नाम कान्हा है। वो हीरों जवाहरातों से लदा रहता है। अगर कोई लूटना चाहता है तो उसको लूटो। वो रोज रात को उस पीपल के पेड़ के नीचे आता है जिसके आस पास बहुत सी झाड़ियां हैं। चोर ने ये सुना और ख़ुशी-ख़ुशी वहां से चला गया।
वो चोर अपने घर गया और अपनी बीवी से बोला कि आज मैं एक कान्हा नाम के बच्चे को लूटने जा रहा हूँ। मुझे रास्ते में खाने के लिए कुछ बांध कर दे दो। पत्नी ने कुछ सत्तू उसको दे दिया और कहा कि बस यही है जो कुछ भी है। चोर वहां से ये संकल्प लेकर चला कि अब तो में उस कान्हा को लूट के ही आऊंगा। वो पैदल ही पैदल टूटे चप्पल में ही वहां से चल पड़ा।
 

रास्ते में कान्हा का नाम लेते हुए वो अगले दिन शाम को वहां पहुंचा, जो जगह उसे पंडित जी ने बताई थी। अब वहां पहुँच कर उसने सोचा कि अगर में यहीं सामने खड़ा हो गया तो बच्चा मुझे देख कर भाग जायेगा तो मेरा यहाँ आना बेकार हो जायेगा। इसलिए उसने सोचा क्यूँ न पास वाली झाड़ियों में ही छुप जाऊँ, वो जैसे ही झाड़ियों में घुसा, झाड़ियों के कांटे उसे चुभने लगे। उस समय उसके मुंह से एक ही आवाज आई- कान्हा, कान्हा। उसका शरीर लहूलुहान हो गया, पर मुंह से सिर्फ यही निकला- कान्हा आ जाओ! कान्हा आ जाओ!
shri krishna
अपने भक्त की ऐसी दशा देख के कान्हा जी चल पड़े। तभी रुक्मणी जी बोली कि प्रभु कहाँ जा रहे हो वो आपको लूट लेगा। प्रभु बोले कि कोई बात नहीं। अपने ऐसे भक्तों के लिए तो मैं लुट जाना तो क्या मिट जाना भी पसंद करूँगा। ठाकुर जी बच्चे का रूप बना के आधी रात को वहां आए। वो जैसे ही पेड़ के पास पहुंचे, चोर एक दम से बाहर आ गया और उन्हें पकड़कर बोला – ओ कान्हा तूने मुझे बहुत दुखी किया है, अब ये चाकू देख रहा है न, अब चुपचाप अपने सारे गहने मुझे दे दे। कान्हा जी ने हँसते हुए उसे सब कुछ दे दिया।
चोर हंसी ख़ुशी अगले दिन अपने गाँव में वापस पहुंचा। सबसे पहले उसी जगह गया जहाँ पर पंडित जी कथा सुना रहे थे। जितने भी गहने वो चोरी करके लाया था, उनका आधा उसने पंडित जी के चरणों में रख दिया। जब पंडित जी ने पूछा कि ये क्या है, तब उसने कहा आपने ही मुझे उस कान्हा का पता दिया था। मैं उसको लूट के आया हूँ और ये आपका हिस्सा है। पंडित जी ने सुना तो यकीन ही नहीं हुआ। वे बोले कि मैं इतने सालों से पंडिताई कर रहा हूँ। वो मुझे आज तक नहीं मिला। तुझ जैसे पापी को कान्हा कहाँ से मिल सकता है।
चोर के बार-बार कहने पर पंडित जी बोले कि चल मैं भी चलता हूँ तेरे साथ वहां पर। मुझे भी दिखा कि कान्हा कैसा दिखता है, और वो दोनों चल दिए। चोर ने पंडित जी को कहा कि आओ मेरे साथ यहाँ पे छुप जाओ। दोनों का शरीर लहूलुहान हो गया और मुंह से बस एक ही आवाज निकली- कान्हा, कान्हा, आ जाओ! ठीक मध्य रात्रि कान्हा जी बच्चे के रूप में फिर वहीँ आये। दोनों झाड़ियों से बहार निकल आये। पंडित जी कि आँखों में आंसू थे। वे फूट फूट के रोने लग गए। चोर के चरणों में गिर गए और बोले कि हम जिसे आज तक देखने के लिए तरसते रहे, जो आज तक लोगो को लूटता आया है, तुमने उसे ही लूट लिया तुम धन्य हो। आज तुम्हारी वजह से मुझे कान्हा के दर्शन हुए हैं। तुम धन्य हो।
सीख

ऐसा है हमारे कान्हा का प्यार, अपने सच्चे भक्तों के लिए। जो उसे सच्चे दिल से पुकारते हैं, तो वो भागे भागे चले आते हैं। प्रेम से कहिये श्री राधे। मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।

प्रस्तुतिः डॉ. आरके दीक्षित, सोरों

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