एक दिन उससे किसी ने पूछा तुम सबको प्रभु-प्रभु क्यों कहते हो, यहाँ तक तुझे भी लोग इसी उपाधि से बुलाते हैं और तुम्हारा कोई असली नाम है भी या नहीं ? सब्जी वाले ने कहा है न प्रभु, मेरा नाम भैयालाल है।
प्रभु, मैं शुरू से अनपढ़ गँवार हूँ। गॉव में मज़दूरी करता था, एक बार गाँव में एक नामी सन्त विद्या सागर जी के प्रवचन हुए। प्रवचन मेरे पल्ले नहीं पड़े, लेकिन एक लाइन मेरे दिमाग़ में आकर फँस गई। उन संत ने कहा हर इन्सान में प्रभु का वास हैं -तलाशने की कोशिश तो करो पता नहीं किस इन्सान में मिल जाय और तुम्हारा उद्धार कर जाए। बस उस दिन से मैने हर मिलने वाले को प्रभु की नज़र से देखना और पुकारना शुरू कर दिया । वाकई चमत्त्कार हो गया दुनिया के लिए शैतान आदमी भी मेरे लिये प्रभु रूप हो गया। ऐसे दिन फिरे कि मज़दूर से व्यापारी हो गया। सुख समृद्धि के सारे साधन जुड़ते गए। मेरे लिए तो सारी दुनिया ही प्रभु रूप बन गईं।
प्रभु, मैं शुरू से अनपढ़ गँवार हूँ। गॉव में मज़दूरी करता था, एक बार गाँव में एक नामी सन्त विद्या सागर जी के प्रवचन हुए। प्रवचन मेरे पल्ले नहीं पड़े, लेकिन एक लाइन मेरे दिमाग़ में आकर फँस गई। उन संत ने कहा हर इन्सान में प्रभु का वास हैं -तलाशने की कोशिश तो करो पता नहीं किस इन्सान में मिल जाय और तुम्हारा उद्धार कर जाए। बस उस दिन से मैने हर मिलने वाले को प्रभु की नज़र से देखना और पुकारना शुरू कर दिया । वाकई चमत्त्कार हो गया दुनिया के लिए शैतान आदमी भी मेरे लिये प्रभु रूप हो गया। ऐसे दिन फिरे कि मज़दूर से व्यापारी हो गया। सुख समृद्धि के सारे साधन जुड़ते गए। मेरे लिए तो सारी दुनिया ही प्रभु रूप बन गईं।
सीख लाख टके की बात, जीवन एक प्रतिध्वनि है। आप जिस लहजे में आवाज़ देंगे पलटकर आपको उसी लहजे में सुनाईं देंगी। न जाने किस रूप में प्रभु मिल जाए। राधे-राधे। प्रस्तुतिः निर्मल राजपूत, मथुरा