यह सुनकर संत की इच्छा हुई की उसमें उनका नाम है कि नहीं, उन्होंने पूछ ही लिया कि क्या मेरा नाम है इस डायरी में ? फ़रिश्ते ने कहा आप ही देख लो और डायरी संत को दे दी। संत ने डायरी खोलकर देखी तो उनका नाम कहीं नहीं था। इस पर संत थोड़ा मुस्कराये और फिर वह अपनी मस्तानी अदा में रब को याद करते हुए चले गए।
दूसरे दिन फिर वही फ़रिश्ते वापस दिखाई दिए। इस बार संत ने ध्यान नहीं दिया और अपनी मस्तानी चाल में चल दिये। इतने में फ़रिश्ते ने कहा- आज नहीं देखोगे डायरी। संत मुस्कुरा दिए और कहा, दिखा दो और जैसे ही डायरी खोलकर देखा तो, सबसे ऊपर उन्ही संत का नाम था।
इस पर संत हँस कर बोले- खुदा के यहाँ पर भी दो-दो डायरी हैं क्या ? कल तो था नहीं और आज सबसे ऊपर है। इस पर फ़रिश्ते ने कहा कि आप ने जो कल डायरी देखी थी, वो उनकी थी जो लोग ईश्वर से प्यार करते हैं। आज ये डायरी में उन लोगों के नाम हैं, जिनसे ईश्वर खुद प्यार करता है।
बस इतना सुनना था कि वो संत दहाड़ मारकर रोने लगे और कितने घंटों तक वहीं सर झुकाये पड़े रहे। रोते हुए ये कहते रहे- हे ईश्वर यदि मैं कल तुझ पर जरा सा भी ऐतराज कर लेता तो मेरा नाम कही नहीं होता। मेरे जरा से सब्र पर तू मुझ अभागे को इतना बड़ा इनाम देगा। तू सच में बहुत दयालु है। तुझसे बड़ा प्यार करने वाला कोई नहीं और बार-बार रोते रहे।
देखा दोस्तो, ईश्वर की बंदगी में अंत तक डटे रहो। सब्र रखो क्योंकि जब भी ईश्वर की मेहरबानी का समय आएगा, तब अपना मन बैचेन होने लगेगा लेकिन तुम वहां डटे रहना, ताकि वो महान प्रभु हम पर भी कृपा करें ।
प्रस्तुतिः आशीष गोस्वामी
मुख्य पुजारी, श्री बाँके बिहारी जी मंदिर, श्री धाम वृंदावन (मथुरा)