कृष्ण नगरी मथुरा में हर साल कार्तिक-शुक्ल दशमी के दिन चतुर्वेदी समाज के द्वारा कंस-वध मेले का आयोजन किया जाता है। यह यहां की अनूठी परंपरा है कि इसी दिन कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध किया था। इसी परंपरा का पालन करते हुए चतुर्वेदी समाज के लोग इस दिन मथुरा मे विश्राम घाट से लेकर कंस टीले तक एक शोभायात्रा निकालते है जिसमें हाथी पर सवार हुए कृष्ण-के स्वरुप और हाथ में लाठियां लिए हुए चतुर्वेदी समाज के लोग शामिल होते हैं। जब ये शोभायात्रा कंस टीले पर पहुंचती है तो कृष्ण-बलराम के स्वरुप यहां स्थापित किये गए कंस के विशालकाय पुतले को युद्ध के लिए ललकारते है और कृष्ण-बलराम द्वारा युद्ध की विधिवत शुरुआत करने के बाद चतुर्वेदी समाज के लोग अपनी लाठियों से कंस को ढेर कर देते है।
कंस का वध करने के बाद सभी चतुर्वेदी समाज के लोग कंस के सिर को घसीटते हुए और सामूहिक गायन करते हुए विश्राम-घाट तक एक विजय-जुलूस निकालते हैं जिसका समाज की महिलाएं फूल बरसाकर स्वागत करती हैं। कंस-वध मेले को लेकर चतुर्वेदी समाज के लोगों में खासा उत्साह रहता है। इस दिन न सिर्फ सभी लोग नए कपडे पहनते है बल्कि घरों में भी विशेष पकवान तैयार किये जाते है और पूरे देश ही नहीं बल्कि विदेश में रहने वाले चतुर्वेदी समाज के लोग भी आज के दिन इस कंस बध मेला में आकर भाग लेते है। कंस को मार कर जाते है इस मेले की खास बात ये भी है की ये एक ऐसा मेला होता है जो कि पूरे भारत वर्ष में सिर्फ मथुरा में ही मनाया जाता है। कंस वध मेले की जानकारी देते हुए प्रमुख उद्योगपति महेश पाठक और लाला पहलवान ने दी।