2015 से महिला समाख्या संस्था कर रही है संचालन केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति एवं गरीबी की रेखा के नीचे यापन करने वाले परिवारों की बालिका को शिक्षा देने के उद्देश्य से सर्व शिक्षा अभियान के तहत समूचे उत्तर प्रदेश में 746 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय नाम से आवासीय स्कूल खोले।इन स्कूलों में 75% अनुसूचित जाति एवं जनजाति की बालिकाएं और 25% गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले सामान्य परिवारों की बालिकाओं के लिए सीट आरक्षित हैं। स्कूलों में 93 बालिकाओं को छटवीं क्लास से लेकर आठवीं क्लास तक की निशुल्क शिक्षा एवं सभी आवासीय सुविधाएं देना प्रारंभ किया। इसी के चलते मथुरा जिले के सभी 10 ब्लॉकों में स्कूल खोले गए इसी योजना के तहत छाता ब्लॉक में भी एक विद्यालय खोलने की योजना बनी, यह स्कूल काफी समय से विभाग द्वारा बनवाया जा रहा था लेकिन बनकर तैयार होने के बाद 16 नवंबर 2015 में महिला समाख्या नामक संस्था को स्कूल संचालन के लिए दे दिया गया।
तीन कमरों में 93 बच्चे तभी से यहां पर स्कूल संचालित हो गया वर्तमान में स्कूल में शिक्षिकाओं सहित कुल 13 लोगों का स्टाफ कार्यरत है और वर्तमान में 93 बालिकाएं यहां अध्ययन कर रही हैं। लेकिन यह कि अगर सुख-सुविधाएं और संसाधनों की बात करें तो वह मानक के मुताबिक नाकाफी है। सबसे बड़ी समस्या तो यहां आवास की बताई गई है। बालिकाओं से मिली जानकारी और स्कूल की अध्यापिकायों के द्वारा बताया गया कि रहने के लिए कुल तीन कमरे हैं और उनमें 93 बालिकाएं और महिला अध्यापिकाएं रहती हैं, जो कि नाकाफी है। इन्हीं तीन कमरों में बच्चों को रहना, सोना, पड़ता है साथ ही इनका सारा सामान बिछाने, ओड़ने के कपड़े, बच्चों के बैग और उनके अन्य सभी सामान इन्हीं कमरे में रखे जाते हैं।
कूलर और आरओ भी पड़े ख़राब पीने के पानी के लिए यहां समरसेबल है उसी के पानी से सारे कार्य होते हैं। कहने को तो यहां एक आरो सिस्टम और वाटर कूलर लगा हुआ है लेकिन उसे चलाने के लिए बिजली नहीं है RO सिस्टम और वाटर कूलर पर जमी गंदगी देखकर आप खुद समझ सकते हैं कि यह सिस्टम काफी लंबे समय से प्रयोग में नहीं लाया गया है।
दो साल बाद भी नहीं हुआ बिजली कनेक्शन कहने को तो स्कूल में आधा दर्जन साइकिल भी हैं। इन्हें भी लंबे समय से प्रयोग में नहीं लाया गया है, स्कूल के एक कौने में पड़ी पड़ी सभी साइकिल खराब हो चुकी हैं। इन सब बातों को लेकर जब स्कूल की शिक्षिका अंजू गर्ग से बात की तो उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए पलंग भी नहीं हैं, जमीन पर ही बिस्तर लगाकर सोते हैं। उसके अलावा अन्य समस्याओं की भी उन्होंने जानकारी दी और बताया कि दो साल के करीब हो गए मगर बिजली का कनेक्शन नहीं हुआ है।
5 हजार मिलता है मनोदय
सरकार ने निर्धन वर्ग की बालिकाओं को शिक्षा देने के लिए स्कूल तो खोल दिए मगर उनके व्यवस्थित और सफल संचालन के लिए न तो केंद्र सरकार ने ही गंभीरता से सोचा और न ही राज्य सरकार ने। तभी तो कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में कार्यरत स्टाफ संतुष्ट नहीं है स्कूल के चौकीदार हरिकिशन ने बताया कि वो कई सालों से चौकीदारी कर रहे हैं। मगर उन्हें न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल रही है उनके जैसे सात लोग इस विद्यालय में ऐसे हैं, जिन्हें मात्र पांच हजार रुपए ही मानदेय के रूप में मिल रहे हैं, अब इतने कम मानदेय से कोई कैसे अपने परिवार का भरण पोषण करे।
सरकार ने निर्धन वर्ग की बालिकाओं को शिक्षा देने के लिए स्कूल तो खोल दिए मगर उनके व्यवस्थित और सफल संचालन के लिए न तो केंद्र सरकार ने ही गंभीरता से सोचा और न ही राज्य सरकार ने। तभी तो कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में कार्यरत स्टाफ संतुष्ट नहीं है स्कूल के चौकीदार हरिकिशन ने बताया कि वो कई सालों से चौकीदारी कर रहे हैं। मगर उन्हें न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल रही है उनके जैसे सात लोग इस विद्यालय में ऐसे हैं, जिन्हें मात्र पांच हजार रुपए ही मानदेय के रूप में मिल रहे हैं, अब इतने कम मानदेय से कोई कैसे अपने परिवार का भरण पोषण करे।
बीएसए करेंगे स्थलीय निरीक्षण छाता के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय कि इन तमाम समस्याओं और इस स्कूल में की जा रही बिजली चोरी को लेकर जब मथुरा के प्रभारी बेसिक शिक्षा अधिकारी गिरिराज सिंह से पूछा तो उनका जवाब था कि विद्यालय का संचालन महिला समाख्या द्वारा किया जा रहा है और जो समस्याएं यहां पर हैं उनके लिए तत्कालीन प्रबंधन ने क्या कार्य किया, उस संबंध में वह कुछ नहीं कह सकते हैं। उनके पास अतिरिक्त प्रभार है उन्होंने संबंधित अधिकारियों से जानकारी की, तो उन्हें पता चला कि विद्यालय के बराबर में नाला है उसी की वजह से जलभराव होता है उसे रोकने के प्रयास भी किए गए और अब वह स्थलीय निरीक्षण कर समस्या को देखेंगे।