भाई चारा बने रहने की मन्नत मांगी ईद उल अजहा के पाक मौके पर बुधवार की सुबह नौ बजे शाही इमाम की देखरेख में शाही जामा मस्जिद एवं गोरानगर स्थित मदीना मस्जिद पर ईद की नमाज अदा की गयी। मुस्लिम भाइयों ने कतारबद्ध होकर नमाज अदा की। अल्लाह की इबादत कर देश में अमन चैन की दुआ मांगी। नमाज के बाद मस्जिद पर मुबारकबाद का दौर चला। विभिन्न राजनैतिक सामाजिक हस्तियों ने मुस्लिम भाइयों को पाक मौके पर मुबारकबाद देकर साम्प्रदायिक सदभाव की मिसाल कायम की। तदोपरान्त मुस्लिम भाइयों ने इमदाद कर अल्लाह से रहमत मांगी। इस मौके पर पुलिस प्रशासन द्वारा सुरक्षा के खास इंतजाम किए गये थे, मस्जिद की ओर से आने जाने वाले मार्ग वाहनोंं का आवागमन प्रतिबंधित किया गया था। वहीं नगर निगम द्वारा प्रशासन द्वारा साफ सफाई के खास इंतजाम किए गये।
पवित्रता का प्रतीक है बकरीद बकरीद को इस्लाम में बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। इस्लाम में एक साल में दो तरह ईद की मनाई जाती है। एक ईद जिसे मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी बकरीद। एक ईद समाज में प्रेम की मिठास घोलने का संदेश देती है, तो वहीं दूसरी ईद अपने कर्तव्य के लिए जागरूक रहने का सबक सिखाती है। ईद उल अजहा या बकरीद का दिन फर्ज़-ए-कुर्बान का दिन होता है। बकरीद पर सक्षम मुसलमान अल्लाह की राह में बकरे या किसी अन्य पशुओं की कुर्बानी देते हैं।
क्यों मनाई जाती है बकरीद ईद उल अज़हा को सुन्नते इब्राहीम भी कहते हैं। इस्लाम के मुताबिक, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के उद्देश्य से अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया। हजरत इब्राहिम को लगा कि उन्हें सबसे प्रिय तो उनका बेटा है इसलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया।
क्यों दी जाती है कुर्बानी हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्दा खड़ा हुआ देखा। बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (साउदी में पाया जाने वाला भेड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है।
बकरीद पर कुर्बानी के बाद परंपरा बकरीद पर कुर्बानी के बाद आज भी एक परंपरा निभाई जाती है। इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं।इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों का बांटा दिया जाता है। ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं।